Demonetisation: नोटबंदी को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत से उबरने' जैसे बयान का सहारा क्यों?
BY Gulzar Hussain
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी (Demonetisation) को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत से उबरने' जैसा भाषण दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कृषि मंत्रालय ने माना है कि नोटबंदी से किसानों को संकट का सामना करना पड़ा है। हालांकि मीडिया में नोटबंदी से हुई किसानों की दुर्दशा की खबर फैलने के बाद कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपने एक ट्वीट में इन तथ्यों से इनकार कर दिया है। तो अब ऐसी दोमुंही स्थिति में पीएम मोदी की बात का क्या मतलब निकाला जाए? क्या नोटबंदी को सफल बताने का पैमाना काले धन का आंंकड़ा प्रस्तुत करना नहीं होना चाहिए था, जिस पर तो कोई बयान ही नहीं दिया जा रहा है।
खबर है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मोदी लगभग 25 रैलियां कर रहे हैं, जिनमें वे मुख्य निशाने पर कांग्रेस को रखकर चल रहे हैं। एक रैली में मोदी ने नोटबंदी का बखान करते हुए कह दिया कि केवल कांग्रेस परिवार को नोटबंदी से तकलीफ हुई है क्योंकि उनके जमा रुपए निकल आए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि जवान बेटे की मौत से बूढ़ा बाप एक साल में उबर आता है, लेकिन कांग्रेस इससे नहीं उबरती।
दरअसल मोदी ने नोटबंदी को लेकर 'जवान बेटे की मौत' की चर्चा कर नोटबंदी के जख्म को एक तरह से हरा कर दिया है। क्या मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि नोटबंदी से मिली बेटे की मौत जैसे दुख को जनता ने भुला दिया है। या फिर देशवासियों के लिए बेटे की मौत का गम इतना छोटा होता है जिसे एक साल में धो- पोछ कर फेंक दिया जाए और उसकी टीस फिर कभी न उभरे?
देश- विदेश की मीडिया ने स्पष्ट तौर पर नोटबंदी के दौरान लगभग 150 देशवासियों की मौत होने और लाखों लोगों के भीषण परेशानी में पड़े होने की बात उजागर की थी। लेकिन इन सबके बावजूद नोटबंदी करने वाली पार्टी भाजपा की ओर से न तो मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई और न ही दो शब्दाें में संवेदना प्रकट की गई।
गौरतलब है कि नोटबंदी से 150 लोगों की मौत के अलावा देश भर में बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे चौपट हुए जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए। इसके अलावा नए नोटों की छपाई और पुराने नोटों के नष्ट करने पर भी करोड़ों की रकम खर्च हुई ही है, लेकिन इन सबके बावजूद काले धन का कोई पता नहीं है। आरबीआई ने भी साफ- साफ कह दिया है कि प्रतिबंधित नोट वापस आ गए हैं। तो अब भाजपा के पास इन सबका कोई प्रामाणिक जवाब नहीं है, इसलिए मोदी नोटबंदी को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत के गम को भुलाने' जैसा बयान दे रहे हैं, ताकि जनता यह समझ जाए कि आखिरकार मौत के गम को भी तो भुला ही दिया जाता है।
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी (Demonetisation) को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत से उबरने' जैसा भाषण दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कृषि मंत्रालय ने माना है कि नोटबंदी से किसानों को संकट का सामना करना पड़ा है। हालांकि मीडिया में नोटबंदी से हुई किसानों की दुर्दशा की खबर फैलने के बाद कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपने एक ट्वीट में इन तथ्यों से इनकार कर दिया है। तो अब ऐसी दोमुंही स्थिति में पीएम मोदी की बात का क्या मतलब निकाला जाए? क्या नोटबंदी को सफल बताने का पैमाना काले धन का आंंकड़ा प्रस्तुत करना नहीं होना चाहिए था, जिस पर तो कोई बयान ही नहीं दिया जा रहा है।
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File Photo |
देशवासियों के लिए बेटे की मौत का गम इतना छोटा होता है जिसे एक साल में धो- पोछ कर फेंक दिया जाए और उसकी टीस फिर कभी न उभरे?
दरअसल मोदी ने नोटबंदी को लेकर 'जवान बेटे की मौत' की चर्चा कर नोटबंदी के जख्म को एक तरह से हरा कर दिया है। क्या मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि नोटबंदी से मिली बेटे की मौत जैसे दुख को जनता ने भुला दिया है। या फिर देशवासियों के लिए बेटे की मौत का गम इतना छोटा होता है जिसे एक साल में धो- पोछ कर फेंक दिया जाए और उसकी टीस फिर कभी न उभरे?
देश- विदेश की मीडिया ने स्पष्ट तौर पर नोटबंदी के दौरान लगभग 150 देशवासियों की मौत होने और लाखों लोगों के भीषण परेशानी में पड़े होने की बात उजागर की थी। लेकिन इन सबके बावजूद नोटबंदी करने वाली पार्टी भाजपा की ओर से न तो मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई और न ही दो शब्दाें में संवेदना प्रकट की गई।
भाजपा एक तरफ नोटबंदी को सही भी ठहराती है, और दूसरी तरफ इसकी त्रासदी से अवगत होने का नाटक भी करती है।इन सबके बावजूद भाजपा का एक धड़ा ऑफ रिकार्ड इस बात को मान कर चल रहा है कि नोटबंदी भीषण भूल थी। इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो वित्त मंत्रालय से जुड़ी संसद की एक स्थायी समिति की बैठक में कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट है। इसमें कृषि मंत्रालय ने माना है कि नोटबंदी से नगदी की कमी हुई, जिससे लाखों किसान बुआई के लिए बीज और खाद की खरीददारी नहीं कर पाए। लेकिन बाद में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपने एक ट्वीट में इन तथ्यों से इनकार कर दिया है। तो भाजपा एक तरफ नोटबंदी को सही भी ठहराती है, और दूसरी तरफ इसकी त्रासदी से अवगत होने का नाटक भी करती है। फिर मुकर भी जाती है। जनता को साफ- साफ उसका यह दोहरा रवैया दिखाई दे रहा है।
गौरतलब है कि नोटबंदी से 150 लोगों की मौत के अलावा देश भर में बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे चौपट हुए जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो गए। इसके अलावा नए नोटों की छपाई और पुराने नोटों के नष्ट करने पर भी करोड़ों की रकम खर्च हुई ही है, लेकिन इन सबके बावजूद काले धन का कोई पता नहीं है। आरबीआई ने भी साफ- साफ कह दिया है कि प्रतिबंधित नोट वापस आ गए हैं। तो अब भाजपा के पास इन सबका कोई प्रामाणिक जवाब नहीं है, इसलिए मोदी नोटबंदी को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत के गम को भुलाने' जैसा बयान दे रहे हैं, ताकि जनता यह समझ जाए कि आखिरकार मौत के गम को भी तो भुला ही दिया जाता है।
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