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बचपन में बिछड़े दोस्त सी अचानक मिलती हैं कुछ फ़िल्में

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- गुलज़ार हुसैन जब कुछ फिल्मों को आप दुबारा देखते हैं,  तो उसे कई नई कसौटियों पर तौलते भी हैं. यह बात तब और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, जब आप बचपन में देखी गई फिल्मों को दुबारा देखते हैं. यह एक बार फिर से बचपन में लौटने जैसा ही होता है ...या किसी पुराने जख्म को कुरेदने जैसा भी हो सकता है ...मैं सोचता हूँ कि जिस तरह 'तेरी मेहरबानियाँ' देखते हुए बचपन में मैं फूट- फूट कर रोया था, क्या अब भी वैसे ही रो सकता हूँ? ऐसा ही कुछ सोचते हुए पिछले दिनों फेसबुक पर मैंने कुछ मनपसंद  फिल्मों को लेकर पोस्ट लिखे थे. कुछ साथियो को यह पसंद भी आया. मेरी एक दोस्त ने सलाह दी की इन सब पोस्टों को ब्लॉग पर रख लूं. उनका सुझाव मानते हुए कुछ पोस्टों को एक जगह रख रहा हूँ. भाई-बहन के रिश्ते का अर्थ   भाई- बहन के रिश्ते में क्या तब एक ठहराव या बदलाव आ जाता है, जब दोनों में से किसी एक की शादी कहीं हो जाती है? यह प्रश्न महत्व रखता है, लेकिन इससे अलग, तब क्या स्थिति बनती है, जब भाई बेरोजगार हो और शराब पीने का आदि हो और पूरा घर केवल कुआंरी बहन की कमाई पर टिका हो? ईमानदार होने के कारण वकालत मे

स्त्रियों की आजादी पर पहरे

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By  Gulzar Hussain स्त्रियों की स्वतंत्रता पर पहरे लगाने के बहाने उनकी राह में कांटे बिछाने की साजिश पुरुषवादी समाज हमेशा रचता रहा है। पिछले कुछ दशक से स्त्रियों की आजादी पर पहरे लगाने के तरीके जरूर बदले हैं, लेकिन हालात पहले जैसे ही भयावह हैं। इधर, वर्तमान समाज को आधुनिक कहने या मानने के नाम पर इतने बड़े मुद्दे को झुठलाया जरूर जाता रहा है, जिससे स्त्रियों से जुड़ी समस्याएं  और बढ़ गईं हैं। दरअसल स्त्री की स्वतंत्रता से पुरुषवादी समाज इतना अधिक डरता है कि वह नैतिकता, शिष्टाचार और धार्मिक रीति रिवाजों के बहाने स्त्रियों पर रोक-टोक लगाता रहता है।  ऑनर किलिंग’ के मूल में दरअसल स्त्री विरोधी मानसिकता ही छुपी है। इसी के बहाने किसी लड़की की इच्छा और उसके सपने को कुचलने का सबसे प्रखर हथियार पुरुषवादियों ने ईजाद कर लिया है। स्त्रियों पर पहरे लगाने के कई बहाने पुरुषवादी समाज के पास हैं। इन बहानों का उपयोग ही वे हथियारों के रूप में भी करते हैं। इतिहास गवाह है कि सती प्रथा, विधवाओं का परित्याग करने की प्रथा और अन्य धर्मांध परंपराओं के नाम पर स्त्रियों के अस्तित्व मिटाने के प्र