...जो आजीवन अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते रहे
नरेन्द्र दाभोलकर की हत्या मामले की जांच में बरती जा रही लापरवाही को लेकर मैंने फेसबुक पर जो लिखा था, उसे यहाँ एक जगह रख रहा हूँ .( गुलज़ार हुसैन ) 20 अगस्त, 2014 अंधविश्वास और विनाशकारी प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले नरेंद्र दाभोलकर की मौत के एक वर्ष बीतने के बाद भी उनके हत्यारों का सुराग नहीं लग पाया है। दूसरी ओर उनके हत्यारों को पकड़ने की जिम्मेदारी जिन लोगों पर थी, उन्हीं पर अंधविश्वास के सहारे छानबीन करने के आरोप भी लग ही चुके हैं। यह स्पष्ट है कि दाभोलकर की हत्या मामले की जांच को लेकर घोर लापरवाही और सुस्ती बरती जा रही है। आश्चर्य तो इस बात का है कि इक्कीसवीं सदी में भी जहां बच्चों की बलि चढ़ाए जाने जैसे अंधविश्वास अस्तित्व में रहे हैं , वहीं पर इन कुरीतियों के खिलाफ लड़ने वाले दाभोलकर के क्रांतिकारी और महत्वपूर्ण कार्यों को रिड्यूस करने का प्रयास किया गया। दाभोलकर की लड़ाई इस देश की नई पीढ़ी को वैज्ञानिक दृष्टकोण सौंपने के लिए थी। वे समाज से अंधविश्वास के दलदल को हमेशा के लिए दूर कर देना चाहते थे। जिन कुप्रथाओं की आड़ में स्त्रियों को डायन कह कर मारा जाता रहा है.