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मैं भी 'काफ्काएस्क'

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  Franz Kafka By Gulzar Hussain कभी-कभी सोचता हूं कि आखिर क्‍यों काफ्का ( Franz Kafka,  3 July 1883 – 3 June 1924)  ने अपने दोस्‍त मैक्स ब्रोड को अपनी सारी पांडुलिपियां देकर आग के हवाले कर देने को कहा होगा? ...आखिर क्‍यों उसके अंदर इतनी निराशा भर गई होगी? क्यों उसे लगा होगा कि उसका लिखा सब कुछ व्‍यर्थ है? हिटलर काल की प्रारंभिक यातनाओं- युद्ध के खतरों को नजदीक से देखने वाले एक भावुक कथाकार के अंदर कौन सी परिस्थितियां कील की तरह चुभ रही हैं, वह हर कोई जान भी तो नहीं सकता था। क्‍या काफ्का का दोस्‍त मैक्स ब्रोड और काफ्का की प्रेमिका डोरा भी उसे ठीक से समझ पाई होगी? ..जिस डोरा की बांहों में काफ्का ने दम तोड़ा था, क्‍या उसने काफ्का की आंखों में झांकते वक्‍त उसकी बेचैनी को समझा होगा?... खैर, डोरा से ही सवाल क्‍यों हो, वह तो उसे महज 11 महीने पहले ही उससे मिली थी... आजीवन बुखार में थरथराते रहे काफ्का को समझना आसान नहीं था, यह उसकी कहानियों से साफ हो जाता है, फिर भी वह जिस पीड़ा को सीने में जब्‍त कर कलम चला रहा था, उसे देखना जटिल होने के बावजूद