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कहां से आए चमन में आग लगाने वाले

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                                                              - गुलज़ार हुसैन     ज म्मू -कश्मीर की हरी-भरी वादियां पिछले कई वर्षों से सुलग रहीं हैं। यहां खिले हुए फूल बार -बार गोली-बारूद से मुर्झाते हैं। आग की लपटों से झुलसी कलियां चटकने से पहले दम तोड़ देती हैं, लेकिन आग  की तपिश जैसे ही ठंडी होती है, ये कलियां फिर खिल उठती हैं। फिर अपने सुगंध से लोगों को अपनी तरफ खींचतीं हैं। जम्मू के किश्तवाड़ जिले और उसके आसपास की वादियों में एक बार फिर किसी कोने से आग की लपटें उठीं हैं। सांप्रदायिकता की ये लपटें फूलों-कलियों को समय से पहले मुर्झा रहीं हैं। यहां की घाटियों में बहती नदियां उदास हैं। सेब और खट्टे अनार के जंगलों से बहती हवाएं किसी डरी हुई लड़की की तरह कांपती -थरथरातीं हैं। ध्यान से सुनिएगा, तो यहां के हर कोने से आवाज आती महसूस होती हैं। ये कहतीं हैं कि इस चमन में अब आग मत लगाइए ...प्रकृति के सबसे अनमोल उपहार को इस घुटन से बाहर निकालिए। पिछले दिनों किश्तवाड़ जिले और आसपास के इलाकों में फैले सांप्रदायिक तनाव के माहौल ने फिर से यह साबित किया है कि इस सबसे पुराने और गंदे रोग को बार -बार कु