क्या देशवासियों को लड़ाने की साजिश है मंदिर- मस्जिद की राजनीति? क्या कहता है संविधान?
संविधान के अनुच्छेद 51(क) के अंतर्गत सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें।By Gulzar Hussain
देश की एकता (Unity) और भाइचारे के ताने- बाने को छिन्न भिन्न करने की साजिश रचना देश के साथ गद्दारी है। किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन को यह अधिकार नहीं है कि वह देश की एकता और संप्रभुता के साथ किसी भी बहाने खिलवाड़ करे। चाहे वह धर्मांधता का बहाना हो या मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Politics) हो, इन सबकी आड़ में देशवासियों को आपस में लड़ाने का खेल बेहद खतरनाक और घटिया है।
![]() |
Symbolic Photo by rawpixel on Unsplash |
आज जिस तरह हमारे देश के न्यायप्रिय संविधान का अपमान करते हुए एक विशेष संगठन और पार्टी के लोग मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Ramjanmabhoomi-Babri Masjid dispute) के बहाने सांप्रदायिकता को हवा दे रहे हैं, वह बेहद खतरनाक है। भारत के लोगों का इसी मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Mandir Masjid politics) के नाम पर पहले भी बहुत अहित हुआ है, इसलिए जनता को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है।
जिस तरह पिछले दिनों कई नेताओं की तरफ से संविधान और सुप्रीम कोर्ट के लिए अपमानजनक बयानबाजी करते हुए नफरतवादी राजनीति को हवा दी गई, उससे यह बेहद जरूरी हो जाता है कि हमारा संविधान इन कट्टरपंथियों के रुख के लिए क्या कहता है, उसे जानें।
यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी और संभवतया हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ़ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की रक्षा खून के आखिरी कतरे के साथ करने का संकल्प करना चाहिए। -बाबासाहेब आंबेडकर25 और 26 नवंबर, 1949 को संविधान निर्माता और संविधान प्रारूपण समिति के सभापति डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा, '' क्या भारतवासी देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे? मैं नहीं जानता। लेकिन यह बात निश्चित है कि यदि राजनीतिक दल अपने पंथ को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता एक बार फिर खतरे में पड़ जाएगी और संभवतया हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। हम सभी को इस संभाव्य घटना का दृढ़ निश्चय के साथ प्रतिकार करना चाहिए। हमें अपनी आजादी की रक्षा खून के आखिरी कतरे के साथ करने का संकल्प करना चाहिए।''
बाबासाहेब के इस वक्तव्य को वर्तमान समय की सत्ताधारी राजनीति के संदर्भ में ठीक से समझा जाना चाहिए। इस समय पंथ या धर्म की राजनीति को जो राजनीतिक पार्टी माथे पर उठा कर चल रही है, वह देश को किस हाल में पहुंचा देना चाहती है, वह भी साफ दिखाई देता है।
संविधान (Constitution of India) के अनुच्छेद 51(क) के अंतर्गत सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। यह संविधान का बहुत महत्वपूर्ण अनुच्छेद है, जो यह बताता है कि देश से प्रेम करने के लिए उसकी जनता से प्यार करना जरूरी है।
इसके अलावा संविधान के नए भाग 4 (क) में विशेष रूप से यह स्पष्ट किया गया है कि मूल कर्तव्य के रूप में सभी नागरिक धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या वर्गगत विविधताओं को लांघकर भारत के सभी लोगों में बंधुता और सर्वसामान्य भाईचारे की तथा एक भारतीय परिवार से संबंध रखने की भावना को बढ़ावा दें।
बंधुता का अर्थ है सभी भारतीयों के सर्वमान्य भाईचारे की, सभी भारतीयों के एक होने की भावना। यही सिद्धांत सामाजिक जीवन को एकता और अखंडता प्रदान करता है। -बाबासाहेब आंबेडकरदरअसल संविधान में बंधुता की जो बात है, वह एक देश की साझा संस्कृति की बात है। इस बंधुता के तहत यह स्पष्ट होता है कि सब एक ही देश के नागरिक हैं और इस नाते सबके सुख- दुख भी साझा हैं। जिस तरह संविधान में धर्मनिरपेक्षता, समानता और स्वतंत्रता का महत्व है, ठीक उसी तरह या उससे आगे बढ़कर बंधुता का महत्व है। संविधान में जो धर्म और राजनीति के पृथक्करण, सभी धर्मों का आदर और धार्मिक स्वतंत्रता की भावना है, उससे संविधान मानवीय ऊंचाइयों को छूता है। वहीं बंधुता का साफ मतलब भाईचारे को बढ़ावा देने से है।
बंधुता को बाबासाहेब आंबेडकर बहुत जरूरी मानते थे। उन्होंने संविधान सभा में बंधुता के सिद्धांत को मान्यता देने की जरूरत के बारे में कहा था, ''बंधुता का अर्थ क्या? बंधुता का अर्थ है सभी भारतीयों के सर्वमान्य भाईचारे की, सभी भारतीयों के एक होने की भावना। यही सिद्धांत सामाजिक जीवन को एकता और अखंडता प्रदान करता है।''
काश, बाबासाहब आंबेडकर जिस तरह बंधुता के बारे सोचते थे, वैसे आज की भड़काऊ रातनीतिक पार्टियां और उसके कथित नफरतवादी फायरब्रांड नेता भी सोचते तो हमारा देश कितनी तरक्की कर सकता था।
संविधान यह कहता है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के बिना आर्थिक विकास के प्रयास असंभव हैं। एकता और अखंडता के अभाव में लोकतंत्र, देश की स्वाधीनता और देशवासियों के सम्मान की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती।भारतीय संविधान का मूल स्वर राष्ट्र की एकता और अखंडता है। संविधान मानवता का परचम लहराने के महत्व को दर्शाते हुए अपने न्यायप्रिय रूप से जनता से जुड़ता है। संविधान प्रत्येक मानव के लिए समान रूप से न्याय की बात करता है, इसलिए वह देश के हर नागरिक के स्वाभिमान और अपने अधिकारों के साथ जिंदा रहने की वकालत करता है। संविधान साफ तौर पर कहता है कि व्यक्ति की गरिमा को तभी सुरक्षित रखा जा सकता है जब राष्ट्र का निर्माण हो तथा इसकी एकता और अखंडता सुरक्षित रहे। संविधान यह कहता है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के बिना आर्थिक विकास के प्रयास असंभव हैं। एकता और अखंडता के अभाव में लोकतंत्र, देश की स्वाधीनता और देशवासियों के सम्मान की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती।
यह कितनी हैरान करने वाली बात है कि संविधान में दर्ज इन न्यायप्रिय सिद्धांतों को किनारे करते हुए आजकल कुछ कट्टर संगठन और सत्ता के घमंड में चूर कई नेता खुलेआम संविधान बदलने या तोड़ने की बात करते हैं, लेकिन उन्हें पार्टी या संगठन से निकाला तक नहीं जाता। अब तो हालात यह है कि संविधान में बंधुत्व और भाईचारे की भावना को ठोकर मारते हुए दंगे- फसाद की राह तैयार की जा रही है। अब आप खुद सोचिए कि जो ताकतें तमाम तरह के खिले फूलों वाले बाग में आग लगाने की तैयारी में हैं, वे क्या देश से गद्दारी नहीं है?
बिल्कुल है ये सब से बड़ी गद्दारी देश के साथ है वो देश जिस की मिट्टी में खाया ,खेले और उसी मिट्टी में कीलें ठोंक दी ।असल लड़ाई मंदिर मस्जिद की भी नहीं है असल लड़ाई है प्रभुत्व की वो भी एक मात्र प्रभुत्व की। जिस के बल पर चंद बिमार लोग अपनी आत्म संतुष्टि कर पाते हैं। यही खेल खेला जा रहा है आम जनता शिकार हो रही है।जब ये सब घट रहा होता है तब कानून भी बौने दिखते हैं। जो इस सब को रोक नहीं पाते।
ReplyDelete