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गर्म पानी : लघुकथा

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AI Image  -शमीमा हुसैन नसीमा दिनभर गुलाम की तरह घर का काम करती रहती थी, लेकिन उसकी सास हफिया को तो यह नजर ही नहीं आता था। जब देखो तब हफिया उसे जली-कटी सुनाने लगती। हफिया अक्सर उसे यह कह कर कोसती रहती कि तुम्हारा बाप भड़वा, तुम्हारी माँ बाईजी ...तुम्हारे बाप ने यह नहीं दिया ...वह नहीं दिया ...जो दिया वह भी ख़राब दिया ...बाई जी को नहीं दिखता है।  दोनों सास बहू एक ही छत के नीचे रहती थी, लेकिन दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए बहुत नफरत भरा हुआ था। हफिया सास कम, मक्खी ज्यादा लगती थी। वह उसके हर काम में नुक्स निकाल देती थी। कभी भी वह बहू के किसी भी काम को सही नहीं कहती।  ...चाय बना दी, तो उसमें चाय पत्ती कम है ...सब्जी में हल्दी की मात्रा अधिक है ...धनिया कम है, रोटी कच्ची है ...चिकेन विसैना है। शादी का दो साल हो गया है, कभी भी अच्छी बात नहीं की। रोज -रोज की किच -किच से तंग आकर नसीमा अपने मायेका चली जाती, तब भी सास हफीया गाली बकती। नसीमा भी झगड़ा करती।  दोनों खूब लड़ाई करती। सास-बहू की लड़ाई से घर में माहौल गर्म रहता था।  नसीम कहती, ''क्या अरज के रखी है, जो इतना रोआब दिख...