साहित्य में नक्सलबाड़ी आंदोलन की आग
आलेख : गुलज़ार हुसैन 'हमलोग जब आए तो हमारे लिए आइडियोलॉजिकल ग्राउंड नक्सलबाड़ी था। यानी हमलोग वेणु गोपाल और आलोक धन्वा को पढ़ते हुए आए थे और उसी से प्रेरणा पाकर हम मार्क्सवादी हुए,ये संपत्ति हमें विरासत में मिली। नक्सलबाड़ी से राजनैतिक मतभेद थे पर आइडियोलॉजिकल मतभेद न थे। - राजेश जोशी पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में १९६७ में शुरू हुए सशस्त्र आंदोलन से न केवल सामान्य जन -जीवन में बदलाव आया,बल्कि देश का साहित्य भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। विभिन्न भारतीय भाषाओं में रचे जा रहे साहित्य पर नक्सली संघर्ष का व्यापक प्रभाव पड़ा। चूंकि बंगाल की भूमि से ही नक्सली आंदोलन का सूत्रपात हुआ,इसलिए बांग्ला गद्य और पद्य में इसकी प्रतिध्वनियां अधिक रेडिकल रहीं,लेकिन कुछ ही समय के बाद हिंदी और पंजाबी के अलावा अन्य कई भारतीय भाषाओं में भी इसके अंकुर फूट निकले। मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव तो स्वतंत्रता प्राप्ति के पहले से ही साहित्य पर रहा था,लेकिन नक्सलबाड़ी आंदोलन ने इसका रुख ही बदल दिया। देश के साहि