मन में चिंगारी भर देने वाले राजेन्द्र यादव अगर आज होते
By Gulzar Hussain ओह! ...राजेन्द्र यादव यह नहीं जान पाए कि गाँव-देहात के सरकारी स्कूल में झोले में किताब रखकर स्कूल जाने वाला एक लड़का उन्हें इतना अधिक प्यार करता था। उसके मन में इतना अधिक उनके लिए सम्मान था कि उनके साहसिक व्यक्तित्व के सामने सारे फ़िल्मी एक्शन हीरो के तिलिस्म धीरे -धीरे फीके पड़ गए। युवावस्था आते ही कब राजेन्द्र 'रीअल हीरो' बन बैठे, पता ही नहीं चला। गाँवों में शोषण और अत्याचार देखकर पढाई -लिखाई से निराश उस युवक के मन में धर्मान्धों, कट्टरपंथियों और परंपरावादियों की चुन-चुन कर धज्जियां उड़ाने वाले राजेन्द्र के सम्पादकीय ने चिंगारी भर दी थी। 'हंस' के सम्पादकीय में जिस तरह उन्होंने लगातार ताकतवर साम्प्रदायिक नेताओं और पूंजीपतियों की खबर ली ,वह सब एकदम से अभूतपूर्व और रोंगटे खड़े करने वाला था। जिस तरह उन्होंने सवर्णवादियों के ढकोसलों और यातनाओं को बेनकाब किया, वह सब हमेशा कुछ लिखने ,कुछ करने को प्रेरित करता रहा था। उन्होंने जिस प्रकार हिंदी साहित्य में दलितों,स्त्रियों और अल्पसंख्यकों को मंच प्रदान किया ,वह सब हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। राजे