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लघुकथा : सोनपुर मेला

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Photo META AI IMAGE  लघुकथा :शमीमा हुसैन   ''मार-पीट कर अब उसे छत्तर मेला (सोनपुर मेला) में बेच दो। शादी के चार-पांच साल हो गए हैं और अब वह मेले में बिकने जाएगी।''   यह बात कहने वाली कौन थी? यह सोनपुर वाली थी। दूर की मेरे सास की चाची। वह बाहर वाली थी, फिर भी घर वाले उसे मानते और उसकी बात का मान रखा जाता। पर वह मुझे रत्ती भर भी नही सुहाती। फिर भी उसके आने पर मैं उन्हें सलाम कर देती थी यहां तक कि मुझे पैर भी दबाना पड़ा। वह जब मजार पर जाती, तो वापस आने पर उसका आंचल सीधा होता और जाते समय आंचल उल्टा होता। मैं यह देखकर मन ही मन मुस्काती। यह दो पल का ईमान है। कुछ देर बाद भर-भर कर बुराई करेगी, तभी इसके पेट के पानी पचेगा। बस यह किस जन्म का बदला ले रही है। यह मैं जानती हूं। यह इसी जन्म की बात है।  जब उसकी शादी हुई थी, तब उसकी सास, ननद, पति, देवर सभी तलवार की तरह उनके सर लटके रहते थे। एक दिन सोनपुर वाली अपनी कहानी सुनाने लगी- ''...मैं चार बजे रोज उठ जाती थी। पर एक दिन मन खराब था। सात बजे उठी। मेरी सास ने किचन में घुसने नही दिया और पति को बोलकर मार खिलवाया।'' चार...