देशवासियों की सुरक्षा के लिए अयोध्‍या में फौज तैनात करने की अखिलेश की सलाह कितनी वाजिब?

By  Gulzar Hussain
एक तरफ जहां भाजपा मंदिर- मंस्जिद की राजनीति में लगी है, वहीं दूसरी तरफ उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इस मुद्दे पर जानमाल के नुकसान पर चिंता जताकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।


अखिलेश ने मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर आगे बढ़ रही भाजपा के बारे में कहा है कि वह किसी हद तक जा सकती है, इसलिए उन्‍होंने अयोध्‍या में फौज लगाकर लोगों सुरक्षा करने की मांग की है। ऐसे समय में जब चुनाव प्रचार को लेकर सभी पार्टियां अपनी- अपनी राह तलाश रही हैं, तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव की यह चिंता कितनी वाजिब है?
File photo: Akhilesh Yadav 

यह तो स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा है कि भाजपा अपने 'सबका साथ सबका विकास' के मुद्दे से पूरी तरह पीछा छुड़ाकर मंदिर- मस्जिद की राजनीति को उभारने पर लगी है। 
यह तो स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा है कि भाजपा अपने 'सबका साथ सबका विकास' के मुद्दे से पूरी तरह पीछा छुड़ाकर मंदिर- मस्जिद की राजनीति को उभारने पर लगी है। ज्‍यादातर टीवी चैनल्‍स पर भी इसी मुद्दे को हवा दी जा रही है, और एक तरह की सांप्रदायिक राजनीति के पैर पसारने के अवसर भी तेज होते जा रहे हैं। और यह सब कुछ आंखें फेर कर चल देने जैसा तो बिल्‍कुल भी नहीं है।
अब पहले जैसा कोई दंगा-फसाद देश में नहीं हो इसको लेकर सतर्क रहने की जरूरत तो है ही।

अखिलेश यादव ने साफ तौर पर कहा है कि कि भाजपा को संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं है, इ‍सलिए जनता की सुरक्षा की पुख्‍ता व्‍यवस्‍था की जाए। उन्‍होंने कहा है कि भाजपा को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्‍मान करना चाहिए। लेकिन इस तरह की बातें कहकर अखिलेश ने निश्चित रूप से दूरगामी राजनीति का परिचय दिया है, क्‍योंकि इस देश ने मंदिर- मस्जिद की राजनीति के नाम पर पहले भी बहुत जख्‍म खाए हैं। अब पहले जैसा कोई दंगा-फसाद देश में नहीं हो इसको लेकर सतर्क रहने की जरूरत तो है ही।
इन परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि देश की जनता की सुरक्षा को लेकर चिंता करने का यह जरूरी समय है। इस समय देश की एकता और भाइचारे को बनाए रखना सबसे अधिक जरूरी कार्य है।
यह तो सभी जानते हैं कि भाजपा ने 90 के दशक में मंदिर- मस्जिद की राजनीति के नाम पर हजारों देशवासियों का जीवन संकटमय बना दिया था। अब वे यदि फिर उसी राजनीति के सहारे आगे बढ़ रहे हैं, तो जनता की सुरक्षा को लेकर चिंता जरूरी है। शिवसेना के कार्यकर्ता अयोध्‍या पहुंच चुके हैं और उधर आरएसएस की ओर से यह बयान पहले ही आ चुका है कि जरूरत पड़ने पर वे 1992 जैसा आंदोलन फिर कर सकते हैं। इन परिस्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि देश की जनता की सुरक्षा को लेकर चिंता करने का यह जरूरी समय है। इस समय देश की एकता और भाइचारे को बनाए रखना सबसे अधिक जरूरी कार्य है।



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