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Showing posts from September 30, 2018

इंसानियत का परचम लहराते 'दोस्‍ती' के गाने

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फिल्म 'दोस्ती' के लिए मजरूह सुल्‍तानपुरी के लिखे इस गाने में जितना दर्द छलकता दिखाई देता है, उतना ही मानवीय प्रेम का ऐलान भी सुनाई पड़ता है। यह गाना इंसान को इंसान के प्रति हमदर्दी रखने का पहला सबक याद दिलाता है। पहली पंक्ति में ही गीतकार कहता है कि 'मैं तुम्‍हारी तरह एक इंसान हूं।'  BY  Gulzar Hussain "जाने वालों जरा मुड़ के देखो मुझे, एक इंसान हूं, मैं तुम्हारी तरह..." यह केवल फिल्मी गाना नहीं है, बल्कि मजरूह की कलम से उतरी वह हकीकत है, जिसे सदियों से इंसान अपने मन में बसाए है। दरअसल 'मैं भी इंसान हूं' कहना उन कट्टरपंथी समूहों के लिए एक जवाब भी है जो इंसान को इंसान मानने से इनकार करते रहे हैं। वर्तमान में जब दुनियाभर के ताकतवर-कट्टर समूह इंसान को जानवरों से भी कमतर आंक रहे हैं , तब इस गाने का महत्व उभर कर सामने आता है। 'दोस्ती' फिल्म गाने का यादगार दृश्य फिल्म 'दोस्ती' के लिए  मजरूह सुल्‍तानपुरी के लिखे इस गाने में जितना दर्द छलकता दिखाई देता है, उतना ही मानवीय प्रेम का ऐलान भी सुनाई पड़ता है। यह गाना इंसान को इंसान के प

क्‍या बलात्‍कार के खिलाफ प्रतीक बन पाएंगी नादिया?

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आईएस (ISIS terrorists) के खौफनाक शिकंजे में कई महीनों तक यातना झेलने वाली यजीदी महिला कार्यकर्ता नादिया मुराद को इस साल नोबेल शांति पुरस्‍कार दिया गया है। यह पुरस्‍कार खास इसलिए है कि नादिया न केवल बलात्‍कार के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रही हैं, बल्कि उन्‍होंने खुद स्‍त्री विरोधी अत्‍याचार की हद को झेला भी है। इसलिए यह उम्‍मीद बंधती हैं वह और मुखर होकर रेप के खिलाफ आवाज बुलंद कर पाएंगी। वे तीन महीने तक आईएस के क्रूर आतंकियों के भीषण जुल्‍म का शिकार हो चुकी हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक ठोस आवाज बनकर उभरी। गौरतलब है कि 2014 में आईएस के क्रूर आतंकियों ने बंधक बनाकर उनका रेप किया था। Nadia: From Slave To Nobel Laureate/ Drawing: Gulzar Hussain  जागरूकता फैलाई नादिया ने बलात्‍कार और अन्‍य यौन अपराधों (sexual violence) के खिलाफ लोगों में बहुत जागरूकता फैलाई है। आज जब पूरे विश्‍व में स्‍त्री अपराधों के खिलाफ एक चुप्‍पी का माहौल दिखाई दे रहा है, तब नादिया का प्रतिरोध बेहद महत्‍वपूर्ण हो जाता है। वे अपनी आपबीती सुनाकर पूरी दुनिया को जागरूक

...तो खूनी खेल भी खेला गया था मुजफ्फरपुर बालिका गृह में, कंकाल मिलने से उठे सवाल

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MUZAFFARPUR SHELTER HOME ABUSE CASE अब तो यह शीशे की तरह साफ होता जा रहा है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह में अनाथ लड़कियों का यौन शोषण ही नहीं, बल्कि उनकी हत्‍या का खूनी खेल भी खेला जा रहा था। सीबीआई की ओर से मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर श्‍मशान गृह में खुदाई के बाद मिले नर कंकाल के बाद अब हर रहस्‍य से पर्दा हटने का समय आ गया है। हालांकि कंकाल के फॉरेसिंक रिपोर्ट का आना अभी शेष है, लेकिन यह साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि किस कदर मासूम बच्च्यिों के साथ दरिंदगी हुई है। चित्र: गुलज़ार हुसैन  गौरतलब है कि कंकाल का मिलना केवल संदेह के तहत नहीं है, बल्कि जानकारी के अनुसार श्‍मशान में खुदाई अभियुक्‍त ब्रजेश ठाकुर के पूर्व ड्राइवर विजय तिवारी के बयान के बाद हुई है। इससे इस संदेह को बल मिलता है कि बालिका गृह में लड़कियों पर जानलेवा जुल्‍म हुए। वहीं इस तरह कंकाल मिलने के बाद यह संदेह भी गहरा गया है कि कहीं कई और लड़कियों को इसी तरह गायब तो नहीं किया गया। बहरहाल, कंकाल मिलने से यह तो साबित हो ही गया है कि रसूखदार दबंगों ने मासूम बच्चियों पर बेहद जुल्‍म ढाए हैं। कंकाल मिलने के बाद उन लोगों की मं

मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन शोषण कांड मामले में मिला कंकाल किसका?

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पूरे देश को हिला देने वाले मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में एक चौंकाने वाली सच्‍चाई सामने आई है। जांच के दौरान सीबीआई को एक मानव कंकाल मिला है, जो बालिका गृह से लापता हुई लड़की का बताया जा रहा है। इस चौंकाने वाले घटनाक्रम के बाद जनता के उस संदेह को बल मिला है, जिसके तहत यह कहा जा रहा था कि न केवल लड़कियों का यौन शोषण हुआ है, बल्कि उनकी हत्‍या भी की गई है। चित्र: गुलज़ार हुसैन  दरअसल इस यौन शोषण कांड के मुख्‍य अभियुक्‍त रसूखदार ब्रजेश ठाकुर के सियासी- दमखम को देखकर ऐसा लग रहा था कि इस मामले की तह तक जाना नामुमकिन है, लेकिन सीबीआई ने इसमें बड़ी सफलता हासिल की है। खबर के अनुसार अभियुक्‍त ब्रजेश ठाकुर के ड्राइवर के बयान पर बालिका गृह के पास ही सिंकदरपुर घाट श्‍मशान गृह में एक बच्‍ची की हत्‍या कर उसे दफना दिया गया था। कंकाल को फॉरेसिंक जांच के लिए भेजा गया है, इसलिए जांच के बाद ही इस कंकाल की पहचान हो पाएगी। लेकिन जहां तक आरोप के बाद की बदलती स्थिति का सवाल है, तो यह सारा मामला अभियुक्‍त ब्रजेश ठाकुर पर शिकंजा कसता हुआ प्रतीत हो रहा है। गौरतलब है कि इस कांड में आरोप यह है कि ब्रजेश ठ

एक नौजवान, जिसने अपनी सारी जिंदगी बच्चों को शिक्षित करने में लगा दी

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BY  GULZAR HUSSAIN यह कहानी उस नौजवान की है, जिसने अपनी सारी जिंदगी बच्चों को शिक्षित करने में लगा दी। हां, द्यूशिन नाम था उसका। रूस के एक गांव में (जहां कोई पढ़ा-लिखा नहीं था) जब उसने बच्चों को पढ़ाने की बात कही, तो लोगों ने उसे खूब परेशान किया। एक व्यक्ति उसे ताने मारते हुए कहने लगा- '' तू जो सारे गांव में चिल्ला चिल्लाकर कह रहा है स्कू्ल खोलूंगा, स्कूल खोलूंगा। तेरी अपनी हैसियत क्या है ...कोट तेरे तन पर नहीं, घोड़ा तेरे पास नहीं, चप्पा भर अपनी जमीन नहीं जिस पर हल चला सके...'' फिर भी  द्यूशिन ने हार नहीं मानी। वह अकेले ही गांव के पास के एक पुराने अस्तबल को स्कूल बनाने में जुट गया। उसके इस मिशन में उसकी सहायक बनी एक छोटी अनाथ बच्ची आल्तीनाई। आल्तीनाई अपनी चाची की क्रूरता भूलकर द्यूशिन को अपने चुने हुए उपले पहुंचाने लगी, ताकि उस भयानक ठंड से वह बच सके। पुस्तक के कवर की तस्वीर  एक बार द्यूशिन उससे कहता है- ''तो फिर आल्तीनाई, तुम और लड़कों-लड़कियों को स्कूल में लाना, लाओगी न...'' ''हां बड़े भाई।'' '' मुझे मास्टर

मंटो की उस कहानी में बच्चों के बारे में ऐसा क्या है?

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मंटो, फाइल फोटो  सआदत हसन मंटो की एक कहानी है ‘मुसटेन वाला’। मनोवैज्ञानिक किस्म की कहानी है। इसका मुख्य पात्र मंटो का दोस्त जैदी है, जो अपने घर में अक्सर आने वाले एक बिल्ले से डर कर बीमार पड़ गया है। जैदी उस बिल्ले से डरकर उसे फटकारता है, दुत्कारता है लेकिन बिल्ला उसी रौब में रोज उसके घर में नमूदार हो जाता है। लेखक मंटो जैदी को राय देता है कि अब जरा बिल्ले के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर देखो, शायद तुम्हारा डर दूर भाग जाए। जैदी वह भी करता है, लेकिन उस बिल्ले को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी दिन लेख क मंटो अपनी बीवी सफिया के साथ जैदी के घर पर होता है, तभी बिल्ला वहां आ जाता है। हठात सफिया चीख पड़ती है- 'मंटो, यह बिल्ला तो पूरा बदमाश लगता है'। तभी जैदी कह उठता है कि उसे डर का हल मिल गया। वह याद करता है कि जब वह स्कूल में पढ़ता था, तो एक मुसटेन वाला लगातार उसके पीछे पड़ा र‍हता था। इस बिल्ले की शक्ल उससे मिलती थी। दरअसल, मंटो की यह कहानी बाल यौन शोषण की समस्या पर लिखी गई है। बिल्ले को प्रतीक के रूप में रखते हुए मंटो यह कहना चाहता है कि बचपन में किए गए शोषण या शोषण के प्रया