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Showing posts from April 6, 2025

लघुकथा : सबसे ज्यादा नशा

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रात में तीन शराबी एक बार से लड़खड़ाते हुए निकले। एक के ऊपर दूसरा और दूसरे के ऊपर तीसरा गिरा जा रहा था। तीनों एक नाले के पास खड़े हो गए। अचानक पहले ने दूसरे का कॉलर पकड़ते हुए कहा- ''तुमसे ज्यादा मुझे चढ़ी है। मेरे पैर डगमगा रहे हैं। इसका मतलब है कि वोदका में रम से ज्यादा नशा होता है।'' यह सुनते ही दूसरे पियक्कड़ ने पहले वाले के बाल पकड़ लिए और बोला- ''तू गधा है, मैं पैर से नहीं चल रहा हूं। उड़ रहा हूं। देख ले। इसका मतलब है रम में वोदका से ज्यादा नशा होता है।'' तभी सिर के बल खड़े तीसरे पियक्कड़ ने उन दोनों की पीठ पर अपने एक-एक पैर रखते हुए कहा- ''तुम दोनों ही तिलचट्टे हो। मैं इतने नशे में हूं कि सिर के बल चल रहा हूं। इसका मतलब है कि व्हिस्की में रम और वोदका से ज्यादा नशा होता है।'' तभी अचानक वहां, बीस-पच्चीस लोगों की भीड़ हाथ में लाठी, डंडे और तलवार लिए नारा लगाते आ पहुंची और तीनों पियक्कड़ों को घेर लिया।   अब तीनों पियक्कड़ उस भीड़ से ही पूछने लगे- ''भाइयों, ये बताओ, वोदका, रम और व्हिसकी में से सबसे ज्यादा नशा किसमें होता है?'...

जब मनोज कुमार का दौर था

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जब मैं छोटा था, तब घर में एक ब्लैक एंड वाइट पोर्टेबल टीवी भी था। सच कहूं, उस समय मेरे लिए उस टीवी के दौर के साथ साथ मनोज कुमार का भी दौर था। मनोज कुमार की कोई फिल्म टीवी पर आने को होती, तो हम सब भाई- बहन बेहद उत्साहित हो जाते थे। उनकी फिल्मों का इंतजार रहता था। 'शहीद', 'उपकार', 'हरियाली और रास्ता' और न जाने उनकी कितनी फिल्में हम छोटे ब्लैक एंड वाइट टीवी पर देख चुके थे... एक बार टीवी पर उनकी फिल्म 'उपकार' आने वाली थी। मेरे पड़ोस के गांव के मेरे भैया के एक दोस्त इस्लाम उस दिन घर आए थे। उन्होंने मुझे पास बुलाया और कहा, "सुनो, उपकार फिल्म जरूर देखना। इसे मत छोड़ना।" मुझे वह फिल्म देखनी तो थी ही, लेकिन उनकी बात सुनने के बाद तो मैंने नजरें गड़ाकर पूरी फिल्म देखी। दरअसल, देशभक्ति को अभिनय के रूप में प्रस्तुत करने का उनका अंदाज सबसे निराला था ...सबसे प्यारा था... 'शहीद' फिल्म जब देखने का मौका आया, तो उससे बेहद प्रभावित हुआ। मनोज कुमार के बोलने का अंदाज और उनके हाव भाव इस तरह से थे कि लगता कि भगत सिंह एकदम ऐसे ही रहे होंगे। उस फिल्म का एक गाना ...