कोहरे में धूप
कहानी : गुलज़ार हुसैन घोड़ी ने बड़े आराम से पीछे का एक पांव उठाकर अजीज के हाथ में दे रखा था और वह हथौड़ी से धीरे - धीरे नाल ठोक रहा था ... ठक ... ठक ... ठक ... जब कभी हथौड़ी जोर से पड़ जाती , तो घोड़ी पूंछ हिलाती हुई जोर से हिनहिना उठती। अचानक घोड़ी ने जोर से अपना पांव हिला दिया तो अजीज अपने बुढाए शरीर को संभाल नहीं सका और हड़बड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा। खजूर के पेड़ के नीचे बैठी बुढ़िया अलाव के लिए शीशम और बबूल की सूखी लकड़ियों के ढेर लगा रही थी। उसने देखा तो चीखती हुई दौड़ी। ‘‘ या अल्लाह , ये क्या हुआ ? ’’ हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए बुढ़िया ने कहा। ‘‘ कुछ नहीं ... हरामजादी बिदक गई। एक तो इस हफ्ते कोई लंबी सवारी नहीं मिली और ऊपर से इसके नखरे ... उफ्फ ’’ कमर पकड़ कर अजीज ने लंबी सांस खींची , तो उसकी सफेद दाढ़ी पतंग की तरह कांप गई। बुढ़िया दौड़ कर अंदर से सरसों का तेल ले आई और कोठरी से खटिया बाहर खींच लिया। अजीज चादर उतार कर उस पर पेट के बल लेट गया। बुढ़िया ने उसकी लूंगी थोड़ी नीचे खिसका दी और कमर में तेल मलने लगी। उसका झुर्रीदार चेहरा चिंता से और अधिक सिकुड़ा - सिकुड़ा नजर आने लगा। ‘