...जब महात्मा गांधी को जला देने को आतुर थी भीड़
हां, इस पुस्तक (दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास) को पढ़कर ही मैं यह जान पाया था कि दक्षिण अफ्रीका में उग्र भीड़ उन्हें जला देने को आतुर थी। इस मुद्दे पर बाद में आता हूं, पहले तो यह बता दूं कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का जो व्यक्तित्व दक्षिण अफ्रीका में उभर रहा था, वह तो उनकी उस छवि से बिल्कुल अगल था, जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने वाले गांधी की रही है। दक्षिण अफ्रीका वाले गांधी अहिंसा के रास्ते पर तो अडिग थे, मगर एक फर्क मैंने पुस्तक पढ़ते हुए नोटिस किया था। वहां पर मजदूरों को न्याय दिलाने की उनकी न्यायप्रिय आक्रामकता और जूझारूपन किसी फिल्मी सुपर हीरो जैसी थी। वे विनम्र होने के बावजूद बिल्कुल तीव्रता से मुखर होते थे और सबसे आगे बढ़कर अपनी बात कहते थे। या शायद वहां की परिस्थितियां ही इस तरह की थी कि गांधी आक्रामक रही होगी, जिसके कारण गांधी उस समय जुल्म का विरोध करते किसी अधीर नायक की तरह दिखाई देते थे। किताब पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि सताए हुए लोगों को वे जल्द न्याय दिलाने को अग्रसर हैं। गिरमिटिया मजदूरों पर हुए जुल्म के विरोध में खुलकर बो