Posts

Showing posts from October 4, 2020

वे देश को बगीचा बनाना चाहते थे

Image
  Photo by Pratik Chauhan on Unsplash By Gulzar Hussain वे भारत को एकता -भाईचारे की खुशबू से गुलज़ार बगीचा बनाना चाहते थे.... हां, महात्मा गांधी देश को ऐसा बगीचा बनाना चाहते थे, जहां सभी तरह के फूल खिलें और लहलहाएं। वे भारत को प्यार के फूलों से ऐसे संवारना चाहते थे कि दुनिया का हर देश ऐसा ही बनना चाहे। देश के वंचितों और माइनॉरिटीज को खुशहाल देखने की यही उनकी जिद्दी दृष्टि उन्हें अन्य समकालीन नेताओं के बीच प्रभावशाली व्यक्ति बनाती है। रूसी लेखक अ. गोरेव और जिम्यानीन की पुस्तक 'नेहरू' में गांधी के इस मानवतावादी सोच का जिक्र है। इस पुस्तक में लिखा है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद (1948) जब देश में साम्प्रदायिक दंगे फैल गए, तो गांधी ने बेहद गुस्से में नेहरू, आज़ाद और पटेल को बुलाया। फिर गांधी ने पटेल से पूछा कि रक्तपात बंद करवाने के लिए आप क्या कर रहे हैं? तब पटेल ने कह दिया कि दंगों की खबरें अतिरंजित हैं और ये बेबुनियाद शिकायतें हैं। यह सुनकर गांधी स्तब्ध रह गए और बोले- "मैं कहीं चीन में नहीं, यहां दिल्ली में ही रहता हूं और मेरे आंख कान अभी दुरुस्त हैं। आप चाहते हैं कि मैं अ

गांधी और आंबेडकर के बीच के संवाद की खुशबू

Image
  शेषराव चव्हाण की किताब  By Gulzar Hussain स्कूल के दिनों से ही इन दोनों दिग्गज नायकों की वैचारिक पृष्ठभूमि मेरे अंदर उथल पुथल मचाती रही है... हां, भारतीय इतिहास में महात्मा गांधी और बाबासाहेब आंबेडकर के बीच जो एक निरंतर संवाद रहा है, वह मुझे आकर्षित करता है। मेरा मन कहता है कि मुसीबत में फंसे इस देश की अगली राह भी इन्हीं दोनों के वैचारिक मंथन की खुशबू से मिलेगी। निस्संदेह दोनों के महान कार्यों और आपसी सहमतियों-असहमतियों के मुद्दे झकझोरने वाले रहे हैं, इसलिए हमेशा मुझे इन दोनों के तुलनात्मक अध्ययन या समकालीन कार्यों पर सामाजिक दृष्टिकोण को लेकर किताब की तलाश रही है। इन दोनों पर कई किताबें पढ़ीं, लेकिन न जाने क्यों अक्सर लगा है कि अभी इन दोनों को लेकर बहुत कुछ लिखा जाना शेष है। पिछले साल जब शेषराव चव्हाण की यह किताब हाथ लगी, तो अपनी उत्सुकता और बढ़ गई कि लेखक ने दो महान व्यक्तित्त्वों को कैसे एक ही साथ साधा है। इस किताब में लेखक ने दोनों के देश के लिए किये उल्लेखनीय योगदानों को बहुत सटीक ढंग से पेश किया है, लेकिन इन दोनों के चुभते हुए संवाद को लेकर विस्तारित काम यहां भी नहीं मिला। आंबेड