कहानी : रील के बाद
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कहानी : नायला अदा AI art उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, एक पुराना सा, खपरैल वाली छत का मकान था—न सफेद, न काला, बस वक्त की गर्द से रंगहीन। इसी घर में रहती थी नज्मा, एक पचपन की उम्र पार कर चुकी विधवा, जिसने जीवन की सारी चुनौतियों को अपने हाथ की सुई और धागे से सीकर झेला था। पति की मौत के बाद वह टूटी नहीं, बल्कि और मजबूत हो गई। अकेली औरत, दो बेटियों की मां—कोई सहारा नहीं, बस उम्मीद और हुनर। नज्मा का पूरा दिन सिलाई मशीन के आगे गुजरता था। वो सुबह की नमाज़ के बाद अपनी मशीन पर बैठती और देर रात तक लोगों के कपड़े सिलती रहती। कभी सलवार-कुर्ते, तो कभी स्कूल यूनिफॉर्म। उसी से दो वक्त की रोटी और बेटियों की फीस निकलती थी। बड़ी बेटी रौनक बारहवीं में थी। सुंदर, आत्मविश्वासी और नयी दुनिया से बेहद आकर्षित। उसे मोबाइल पर रील बनाना पसंद था। वो अपनी सहेलियों के साथ स्कूल की यूनिफॉर्म में गाने पर लिप्सिंक करती, कभी डांस, कभी एक्टिंग। घर में वह मोबाइल स्टैंड पर मोबाइल रखती और रूमाल को घूंघट की तरह ओढ़कर डायलॉग बोलती—“मुझे हीरोइन बनना है अम्मी।” नज्मा पहले तो हँस देती, मगर धीरे-धीरे डरने लगी। दुनिया देख...