तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती
Photo by Abhijit Pattnaik on Unsplash -गुलज़ार हुसैन घर में बंदूक रखने से कभी सोचा कि क्या बिगड़ा? तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती *** कलम उठाई है तो इस कलम का मान तुम रखना भले कट जाए गरदन, इंसाफ की जुबान तुम रखना *** आंखें हैं, दिल है और लब भी साथ है मेरे तो कैसे चुप रहें, इंसान पर जब जुल्म होता हो *** वे हमारी पीठ पर कोड़े चला के हार गए किसी को मार के कुछ भी नहीं जीता जाता *** वंचित जनों की पीठ पर चाबुक चलाते हो अरे कैसे फिर भारत माता की जय गाते हो *** तुम्हारे खेत, तुम्हारे बाग-बगीचे, तुम्हारे ही पोखर आओ, दलित-पसमांदा की नजरों से ये दुनिया देखो *** वतन के लिए जिसने अपनी जान तक दे दी उसके लिए तूने मसान का एक कोना नहीं दिया *** सफर अधूरा, प्यार अधूरा, हर मुलाकात अधूरी ही रही मगर वतन को और बेहतर बनाने का ख्वाब अधूरा न रहे *** फुटपाथ पर चलो तो कदम आहिस्ता से रखना सियाह रात में थक कर यहां मजदूर सोते हैं *** उसके होंठों पे थी मुस्कान और आंखों में दर्द था दिल ने कहा, गर प्यार है तो आंखों को चूम लो *