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Showing posts from January 20, 2019

ग्राहम स्‍टेंस को याद करने का महीना है जनवरी

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By Gulzar Hussain जनवरी भले कुछ लोगों के लिए जश्न मनाने का महीना हो, लेकिन यह एक ऐसा महीना भी है, जिसमें फादर ग्राहम स्टेंस (Graham Staines) हमसे बिछड़ गए थे ...वही स्टेंस जिन्होंने अपने जीवन के 34 वर्ष उड़ीसा के गरीबों-वंचित जनों की सेवा में खपा दिए ...वही स्टेंस जिन्होंने बेसहारा कुष्ठ रोगियों को आश्रय देने और देखभाल के लिए लेप्रसी होम खोला और खुद अपने हाथों से लोगों के घाव साफ करते रहे। वे आस्ट्रेलिया की सुख- सुविधाओं से भरी जिंदगी छोड़कर 1965 में भारत आए थे और यहां की वंचित जनता की सेवा को ही अपनी जिंदगी का लक्ष्‍य बना लिया। Graham Staines/ File photo   गरीब आदिवासियों और वंचित लोगों के कुष्‍ठ रोग के इलाज का जिम्‍मा उन्‍होंने तब उठाया था, जब भारत में इस बीमारी का इलाज काफी सहज नहीं था। उन्‍होंने 1982 में मयूरभंज लेप्रसी होम स्‍थापित किया और जी- जान से कुष्ठ रोगियों की सेवा में लग गए। स्टेंस की हमसफर बनीं ग्लैडीस स्टेंस भी उनके काम में हाथ बंटाने लगी। वे दोनों अपने बच्चों के साथ उड़ीसा के अत्यंत पिछड़े इलाकों में घूम-घूम कर बेसहारों की मदद करते थे। ...लेकिन 22 जनवरी, 1999 को

आत्महत्या से पहले: लघुकथा

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लघुकथा: गुलजार हुसैन/ S hort story by Gulzar Hussain Photo by  Everton Vila  on  Unsplash उन दोनों ने अपनी -अपनी दो कटी उंंगलियों की ओर देखा और सहमे हुए एक दूसरे से लिपट गए...यह जख्म तीन महीने पहले का था, जब दोनों दिल्ली भाग गए थे ... वह जहां खड़ी थी वहां से बस एक छलांग ही उसकी जान लेने के लिए काफी थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी, क्योंकि उस पुल पर वह उसका हाथ थामे खड़ा था.  ...तो क्या दोनों वहां आत्महत्या करने आए थे? वह बहुत देर चुप नहीं रह सका. उसने उसके बिखरते बालों में हाथ फिराते हुए कहा, "क्या इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है ?" " वे 'ऑनर किलिंग' पर उतारू हैं और तुम राह ढूंढ रहे हो ...ऐसे में जान देने के अलावा क्या रास्ता बचता है? घर से भागने का परिणाम तो पहले ही भुगत चुके हैं हम." वह नम आंंखों से उसकी तरफ देखते हुए बोली, "नहीं ...इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं...हम दोनों दो अलग जाति के हैं और यही दुनिया की नजर में हमारा सबसे बड़ा अपराध है. हम शादी करेंगे तो मेरे पिता तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे." "हांं...और मेर