जब मैंने यह उपन्यास पढ़ा था...
जब मैंने यह उपन्यास पढ़ा था, तो गंगौली गांव का होकर रह गया था... गंगौली के धूल उड़ाते बच्चे ...सुंदर लड़कियों की गपशप ...एक दूसरे से जलते-झगड़ते अधेड़ ...ईर्ष्या और स्नेह से भरी स्त्रियां ...दरअसल, यह था तो एक संपूर्ण गांव, लेकिन वहां रहने वालों की कहानियां अधूरी थी ... फुन्नन, बेदार, बलराम, कजरारी आंखों वाली बच्छन...सैफुनिया ...और ढेर सारे हंसते, बोलते, लड़ते हुए लोग। इस 'आधा गांव' में एक रहस्यमयी इमाम बाड़ा भी था, इसके बारे में मशहूर था कि हर जुम्मे यहां जिन्नात मजलिस करते हैं। यह पढ़ते हुए हॉरर फिल्म का एहसास होता...इस इमाम बाड़े की तरफ से शाम के समय कोई डर के मारे गुजरता नहीं था... लेकिन जब मुहर्रम आता तो इसका मतलब होता था कि इमाम हुसैन भारत में आ गए और इमाम बाड़ा अब जिन्नात के कब्जे से मुक्त होकर गांववाले के कब्जे में आ गया। लेकिन फिर भी नन्हे राही (उपन्यासकार) के मन में डर बना रहता कि अभी तो चांद ही निकला है, क्या पता कोई न कोई भूला भटका जिन्न तो वहां होगा ही...इसलिए वह दद्दा और अम्मा के बीच में ही चलता... खैर, उपन्यास को पढ़ते हुए मैं एक ऐसे गांव में था, जो मेरे गांव से अलग किस्म क