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मेहनतकश की बस्तियों में बसी है मुंबई की जान

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कभी फिल्म वालों ने इसे प्रसिद्ध बनाने का दावा किया, तो कभी चित्रकारों-साहित्यकारों ने इसकी नींव मजबूत करने का दावा किया। दावे लाखों किए गए, लेकिन मुंबई ने इन दावों से प्रभावित हुए बिना ही सब को समान रूप से सीने से लगाया और प्यार दिया। मुंबई ने कभी किसी प्रांत विशेष, भाषा विशेष, धर्म या जाति विशेष के नाम से प्रभावित होकर स्नेह नहीं दिया, बल्कि जी जान लगाकर मेहनत करने और संघर्ष करने वालों को ही अपना बनाया। Photo by Gulzar Hussain By Gulzar Hussain जाने क्या बात है बंबई तेरी शबिस्तां में हम शाम-ए-अवध, सुबह-ए-बनारस छोड़ आए हैं                                                - अली सरदार जाफरी  ‘मुंबई महानगर’ ( Mumbai)  कभी शायरों और मजदूरों के होठों पर ‘क्रांति गीत’ बनकर थिरकने वाला शहर कहलाया, तो कभी यह राजनीति की भट्ठी में तपकर चर्चा में रहने वाला महानगर बना, लेकिन इसकी रवानगी को बदल पाना कभी किसी के बस में नहीं रहा। इस महानगर को सबने अपने-अपने नजरिए से देखा। मराठियों ने इसे अपना शहर माना, तो उत्तर भारतीयों ने अपनी मेहनत से इस शहर को सजाने संवारने का दावा किया। कभी गुजरा