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अश्वेतों पर जुल्म के खिलाफ उठा ली कलम

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आइए, आज आपको जुलिएट हैंपटन मोर्गन से मिलवाते हैं।  मोर्गन एक श्वेत अमेरिकी महिला थीं, लेकिन उन्होंने अश्वेतों के साथ होने वाले अन्याय और शोषण का जमकर विरोध किया। वे लाइब्रेरियन थी, लेकिन रंगभेद के खिलाफ उनके लिखे आलेखों ने लोगों को हिला कर रख दिया था। एक बार वे बस से घर लौट रही थीं, तभी उन्होंने पहली बार एक अश्वेत महिला पर अत्याचार होते हुए देखा। अश्वेत महिला बस में घुसी और टिकट लेकर फिर उतर कर पिछले  गेट से घुसने के लिए बढ़ गई।  ऐसा अक्सर अश्वेत लोगों के साथ वहां होता था, लेकिन इस बार जो मोर्गन ने देखा, तो उससे वह स्तब्ध रह गर्इं। जब तक अश्वेत महिला पिछले दरवाजे से बस घुसती, तब तक ड्राइवर ने बेरुखी से बस आगे बढ़ा दी। अश्वेत महिला बस के बाहर ही रह गईं। यह सब मोर्गन से बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने इमरजेंसी कोर्ड खींच कर बस रोक दी। इसके बाद उन्होंने ड्राइवर से बस का पिछला दरवाजा खोलकर महिला को अंदर आने देने के लिए कहा।   इस तरह मोर्गन जब भी कहीं अश्वेतों के साथ अत्याचार होते देखती, तो इसके खिलाफ क्रांतिकारी लेख लिखने बैठ जाती। स्थानीय अखबारों में छपे उनके लेखों के कारण उन्हें जा

तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती

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Photo by Abhijit Pattnaik on Unsplash -गुलज़ार हुसैन  घर में बंदूक रखने से कभी सोचा कि क्या बिगड़ा? तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती *** कलम उठाई है तो इस कलम का मान तुम रखना भले कट जाए गरदन, इंसाफ की जुबान तुम रखना *** आंखें हैं, दिल है और लब भी साथ है मेरे तो कैसे चुप रहें, इंसान पर जब जुल्म होता हो *** वे हमारी पीठ पर कोड़े चला के हार गए किसी को मार के कुछ भी नहीं जीता जाता *** वंचित जनों की पीठ पर चाबुक चलाते हो अरे कैसे फिर भारत माता की जय गाते हो *** तुम्हारे खेत, तुम्हारे बाग-बगीचे, तुम्हारे ही पोखर आओ, दलित-पसमांदा की नजरों से ये दुनिया देखो *** वतन के लिए जिसने अपनी जान तक दे दी उसके लिए तूने मसान का एक कोना नहीं दिया *** सफर अधूरा, प्यार अधूरा, हर मुलाकात अधूरी ही रही मगर वतन को और बेहतर बनाने का ख्वाब अधूरा न रहे *** फुटपाथ पर चलो तो कदम आहिस्ता से रखना सियाह रात में थक कर यहां मजदूर सोते हैं *** उसके होंठों पे थी मुस्कान और आंखों में दर्द था दिल ने कहा, गर प्यार है तो आंखों को चूम लो *

प्रेम जहां है ‘सैराट’ वहां है

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By Gulzar Hussain नागराज मंजुले की मराठी फिल्म ‘सैराट’ (Sairat) ने सफलता के झंडे तो गाड़े ही है, साथ ही इस फिल्म ने हमारे समाज में तेजी से फैलती जा रही आॅनर किलिंग जैसी बड़ी समस्या को भी सामने रखा है। हाल ही में नवी मुंबई में प्रेम संबंध को लेकर एक दलित लड़के की हत्या कर दी गई। इस हत्या से मुंबई सहित महाराष्ट्र भर के लोग सन्न रह गए  हैं। इस हत्या के बाद फिर से लोगों में आॅनर किलिंग को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। इस हत्या ने लोगों में यह बात गहरे से बैठा दी है कि ‘सैराट’ हमारे  समाज की कड़वी सच्चाई है और जहां कहीं भी प्रेम है वहीं पर ‘सैराट’ (ऑनर किलिंग) भी है। प्रेम की अनगिनत गलियों में ‘सैराट’ के कांटे उगे हुए हैं। इससे सतर्क रहने की जरूरत है।दरअसल सैराट का मतलब तो दीवाना हो जाना होता है, लेकिन हम यहां सैराट का मतलब आॅनर किलिंग मान कर चल रहे हैं। ( Sairat  फिल्म का एक दृश्य/ File Photo)  पर्श्या की तरह मारने की  धमकी  नवी मुंबई में दलित लड़के की हत्या किए जाने के बाद कई तरह की बातें सामने आई हैं। आरोप है कि दलित लड़के को  ‘सैराट’ के पर्श्या की तरह ही मार डालने की  धमकी द

‘जस्टिस फॉर रोहित’ के नारों से गूंज उठी मुंबई

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(1 फरवरी 2016 को मुंबई में निकाली गई छात्र रैली की रिपोर्ट और सभी फोटो: गुलज़ार हुसैन) # Rohith_Vemula रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के मामले में न्याय दिलाने के लिए एक फरवरी को निकाली गई प्रतिरोध रैली में छात्रों और एक्टिविस्टों के जोशीले नारों से मुंबई गूंज उठी। गौरतलब है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित रिसर्च स्कॉलर रोहित की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने की मांग को लेकर मुंबई में विभिन्न कॉलेज के छात्रों ने प्रतिरोध रैली निकाली।  ‘जस्टिस फॉर रोहित -ज्वाइंट एक्शन कमेटी, मुंबई’ के मोर्चे के तहत निकाली गई इस रैली में न केवल विद्यार्थी, बल्कि कई सामाजिक संगठन और राजनीतिक पार्टियां भी शामिल थीं। मुंबई के भायखला से विधान भवन के लिए निकाली गई इस रैली का नेतृत्व एड. प्रकाश आंबेडकर ने किया। गौरतलब है कि सुबह 11 बजे विभिन्न आंबेडकरवादी, प्रोग्रेसिव और लोकतांत्रिक छात्र समूह भायखला में रानीबाग के पास जमा हो गए। इस दौरान चप्पे-चप्पे पर पुलिस की कड़ी व्यवस्था थी। इस आंदोलन में मुंबई के अलावा नवी मुंबई और ठाणे के विभिन्न छात्र संगठन शामिल हुए। यहां आईआईटी बॉम्बे,

अपने- पराए: बेरोजगार पति के साथ रहने वाली पत्नी के दुख

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उस दृश्य को भूलना आसान नहीं है, जिसमें आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाए जाने से आहत पत्‍नी  ( शबाना  आजमी )  अपने पति से कहती है कि कुछ भी करो, कोई भी काम करो, ताकि पैसे आ सकें। वह एक आत्मग्लानि से तड़पती स्त्री है, जिसकी आंखों में आंसू नहीं, लेकिन दर्द का अथाह सागर है।  By  Gulzar Hussain संयुक्त परिवार में बेरोजगार पति के साथ रहने वाली पत्नी के दुख और निरंतर अपमानित होने की वेदना को समझ पाना आसान नहीं है। एक घरेलू स्त्री के इस दुख को आत्मसात करते हुए सिनेमा के पर्दे पर साकार कर देना तो और भी कठिन काम है, लेकिन शबाना आजमी ने इसे बड़ी शिद्दत से कर दिखाया है।  शरतचंद्र के उपन्यास ‘निष्कृति’ पर आधारित बासु चटर्जी के निर्देशन में 1980 में बनी फिल्म ‘अपने- पराए’ की कहानी तीन भाइयों और उनकी  पत्नियों के इर्द- गिर्द घूमती है। इसमें शीला की भूमिका में शबाना आजमी ने सबसे छोटे और बेरोजगार भाई की पत्नी का किरदार निभाया है।  फिल्‍म का एक दृश्‍य आत्मग्लानि और स्वाभिमान के बीच जूझती एक घरेलू स्त्री के संघर्ष और व्यथा को शबाना पूरी तरह अपने किरदार में उतारती हैं।  घर के सदस्यों की ओर से पति (अ