'गोरा' के माध्यम से टैगोर ने कहा था- मानवता सबसे ऊपर
Rabindranath Tagore By Gulzar Hussain गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को याद करते ही मेरे मन में उनके कालजयी उपन्यास 'गोरा' की कहानी घूमने लगती है। इस उपन्यास में फर्जी राष्ट्रवाद की नींव पर खड़े उच्च जातीय घमंड की पोल खोलते हुए टैगोर मानवता को सर्वोपरि रखते हैं। इस कहानी का खलनायक गोरा (गौरमोहन) शुद्ध रक्त के गर्व में चूर होकर अन्य कमजोर जातीय समूहों, पंथों और समुदायों से घृणा करता है। लेकिन उपन्यास के अंत में जब गौरमोहन को सच पता चलता है तो उसके पैरों तले धरती खिसक जाती है। दरअसल उसे पता चलता है कि जिन वंचित जातीय समूहों से वह घृणा कर रहा था, वह उन्हीं जातीय समूहों से आने वाले माता-पिता की खोई हुई संतान है। पल भर में गोरा के अंदर दशकों से अर्जित उच्च जातीय घमंड चकनाचूर हो जाता है। आज फर्जी राष्ट्रवाद की खाल ओढ़कर अपने ही देश के लोगों से नफरत करने वाले ढोंगियों के खिलाफ यह उपन्यास एक जरूरी दस्तावेज है। पुस्तक का कवर/ साभार आजकल राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता की राजनीति का जो 'भूत' लोगों को डरा रहा है, दरअसल उसका अस्तित्व एक विशालकाय गुब्बारे जैसा ही है। सच क