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Showing posts from November 13, 2022

लघुकथा : जवानी

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Photo by Briana Tozour on Unsplash कथाकार : शमीमा हुसैन ''ताहिरा ...ताहिरा, क्या कर रही हो? आज तो तुम्हारा छुट्टी का दिन था, घर पर थोड़ा आराम ही कर लेती।'' दूर से मां की आवाज आई। ताहिरा अनसुना करते हुए बाथरूम की तरफ चली जाती है। फिर वहां से आकर किचन में जाकर देखती है, उसका मनपसंद खाना खीर-पूरी बना हुआ है। इसके बाद वह सीधे मां के पास आकर कहती है, ''ममा, आज तो आपने मेरे पसंद का खाना बनाया है। ...शुक्रिया ममा। मैं तो आलिया आंटी के पास गई थी और उसके बाद सविता आजी के इधर चली गई, इससे लेट हो गया।'' ममा तुनक कर बोली, ''मुझे कुछ मत सुना, तेरे दिल में जो आए तू कर।'' ताहिरा जानती थी ममा को कैसे मनाना है। ममा लेटी हुई थी। वह सीधा उनके पैर के पास बैठ गई और उसके पैर दबाने लगी। ममा चाहे कितनी भी गुस्सा क्यों न हो, वह पैर दबाने से पिघल ही जाती है। थोड़ी देर में ही ममा बोल पड़ी, ''चल, खाना लगाती हूं। छोड़, पैर में दर्द नहीं है।'' ''ममा थोड़ा सा दबा देती हूं।'' ताहिरा पैर दबाते हुए बोलती है। ममा पैर को खींचकर उठ जाती है।

देवदास की आखिरी इच्छा

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    देवदास फिल्म का पोस्टर/ सोशल मीडिया से साभार By Gulzar Hussain उसकी आखिरी इच्छा क्या थी, यही न कि सांसों की डोर टूटने से पहले बस एक बार वह अपने बचपन की प्रेमिका को देख ले... लेकिन यह भी नहीं हो सका। पारो के दरवाजे पर आकर उसके नाम लेता हुआ देवदास दम तोड़ता रहा ...लेकिन पारो उससे मिलने की चाहत के बावजूद नहीं आ पाई ...वह देवदास से मिलने के लिए घर से दौड़ी लेकिन उसे घर के बंधन ने रोक लिया। दरवाजे बन्द कर दिए गए। क्या यही है किसी सच्चे प्रेम की मंजिल? शरतचंद्र के उपन्यास पर आधारित 1955 में बनी बिमल राय की इस फिल्म में दिलीप कुमार ने मानो देवदास के हर सजीले पल को जीवंत कर दिया है। ट्रेन से उतरने के बाद नशे में लड़खड़ाते देवदास के मन में बस एक ही आस है कि वह पारो से मिल ले। यह ठीक ऐसी ही आस या इच्छा है, जब कोई भी व्यक्ति मरने से पहले अपने सबसे प्रिय कार्य को पूरा कर लेना चाहता है। एक चित्रकार चाहता है कि मरने से पहले उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति पूरी हो जाए ...एक उपन्यासकार अपनी मौत से पहले कालजयी उपन्यास लिख लेना चाहता है ...एक पिता अपने बच्चों के सपने पूरे होते देखने के बाद ही मरना चाहता है ...