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Showing posts from August 1, 2021

ये किसका लहू है कौन मरा?

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By Gulzar Hussain इस तरह सवाल पूछने वाला शायर क्यों न नौजवानों के मन में बस जाएगा? ...इसी तरह स्कूल के दिनों में मेरे मन में भी साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi) बस गया था। उसकी नज़्म में उठते सवाल अंतर्मन में तूफान मचाने लगे थे। मुझे अक्सर यह लगा कि 'तल्खियाँ' या इससे इतर छपी उसकी नज़्म और ग़ज़ल सवाल ज्यादा पूछती हैं। ...कभी साहिर पूछता है -'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है? कभी वह सवाल करता है- 'प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी, तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं? सवाल शायद उसकी शायरी का फलसफा था... 'तल्खियाँ' जब प्रकाशित हुई थी, तब साहिर कॉलेज का छात्र था और जब मेरे हाथ यह पुस्तक लगी तो मैंने 10वीं की परीक्षा पास की थी। तल्खियाँ के मुझ तक पहुंचने में दशकों के फासले हैं, लेकिन उसमें शामिल नज़्म मुझे अभी-अभी कही गई लगती है। इंसानियत का परचम लहराने वाले शायर साहिर लुधियानवी अक्सर अन्याय के खिलाफ कलम उठाते रहे। वे लिखते हैं— आज से ऐ मज़दूर-किसानों ! मेरे राग तुम्हारे हैं फ़ाकाकश इंसानों ! मेरे जोग बिहाग तुम्हारे हैं जब तक तुम भूके-नंगे हो, ये शोले खामोश

Tokyo Olympics: गुरजीत कौर की स्टीक कमाल कर गई

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टोक्यो ओलम्पिक (Tokyo Olympics) महिला हॉकी में सेमीफाइनल तक पहुंचने के लिए वर्ल्ड की नंबर 2 टीम ऑस्ट्रेलिया को हरा पाना भारतीय महिला हॉकी टीम (Indian women's hockey team) के लिए आसान नहीं था, लेकिन गुरजीत कौर (Gurjit Kaur) ने वह कर दिखाया, जिसकी कल्पना भी मजबूत ऑस्ट्रेलियाई टीम ने नहीं की थी। गुरजीत कौर ने 22वें मिनट में पेनल्टी कार्नर पर महत्वपूर्ण गोल कर दिया...यह एक गोल ही ऑस्ट्रेलिया पर भारी पड़ गया। इस एक गोल में वह जादू था कि आस्ट्रेलिया की पूरी टीम इसका सामना नहीं कर पाई। गुरजीत के अलावा सविता पुनिया ने भी कमाल का खेल दिखाया। वह आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की हर चालाकी को गोल रोककर नाकाम करती गईं।   इस बेहतरीन खेल के लिए गुरजीत कौर, सविता पुनिया सहित पूरी टीम बधाई की हकदार है। 

जिन्होंने कलम चलाने का मकसद बताया

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गुलज़ार हुसैन प्रेमचंद (Premchand) ने 1933 में 'हंस' के कवर पर बाबासाहेब आंबेडकर (Babasaheb Ambedkar) का चित्र छापकर कलम चलाने का मकसद बताया था। दरअसल, उनकी यह बड़ी पहल नई पीढ़ी को लिखने की राह बताने के लिए थी ...वे खेतिहर मजदूर के रूप में खेत में पसीना बहाती वंचित जनता के हक के लिए साहित्य रचने के पक्षधर थे ...यह संकेत था कि लेखन का उद्देश्य वंचित, दलित, पीड़ित जनता की आवाज होनी चाहिए, अन्यथा वह किसी काम का नहीं। गोदान का होरी महतो हो ...सिलिया हो या ईदगाह का हामिद हो ...उन्होंने हर पात्र के माध्यम से यह संकेत दिया कि देश की सबसे बड़ी समस्या से आंखें चुराते हुए साहित्य नहीं लिखा जा सकता। आज यह अकाट्य सत्य है कि भारत में किसानों, खेतिहरों, मजदूरों, छोटे कारीगरों, ठेले वालों, सफाईकर्मियों, मजबूर वेश्याओं या वंचित जातीय समूहों के हक़ की बात किए बिना आपका लेखन 'जीरो' है। प्रेमचंद नई पीढ़ी को सबसे जरूरी राह बता गए। प्रेमचंद के दौर या उससे पहले वंचित जातीय समूहों के बारे में साहित्य लेखन करने वाला कौन था? उस दौर में हिन्दी पट्टी में मुझे तो दूर दूर तक प्रेमचंद के अलावा कोई दूसरा नज