आजी की पीड़ा : लघुकथा
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-शमीमा हुसैन
मुंबई की चाली में एक अस्सी साल की वृद्ध औरत रहती है। हम सब उसे आजी (दादी) कहकर पुकारते हैं। चाली की एक परचून की दुकान वाली गली में सबसे आखिरी झोपड़ा उनका ही है। खूब टहलने और बोलने वाली आजी पिछले कुछ दिनों से बीमार है। इधर कुछ दिनों से उसकी कराहने की आवाज हर रोज सुनाई देने लगी है। पता चला है कि उनके पेट में दर्द रहने लगा है।
दरअसल, यह दर्द उन्हें बहुत दिनों से था। लेकिन गली के ही एक साधारण डॉक्टर से दिखाने से उन्हें आराम हो जाता था। पर इस बार ऐसा नहीं था। वह कई बार अपने बेटे हमीर और बेटी रेहाना से अपनी तकलीफ बता चुकी थी, लेकिन दोनों के पास उनके लिए समय नहीं था।
आख़िरकार, एक दिन पड़ोसी की मदद से आजी को अस्पताल ले जाया गया।
डॉक्टर ने जांच के बाद गंभीरता से कहा, ''इनकी हालत नाजुक है। पेट में गांठ है। तुरंत ऑपरेशन करना होगा।''
इसके बाद पड़ोसी ने आजी के बेटे हमीर को फोन करके सारा मामला बताया। हमीर सुनते ही आनन-फानन में अस्पताल पंहुचा, लेकिन डॉक्टर की बात सुनते ही रोने लगा।
हमीर ने कहा, ''इस उम्र में ऑपरेशन करवाने से क्या फायदा? अम्मी शायद ऑपरेशन झेल नहीं पाएगी।''
डॉक्टर ने समझाया, ''ऑपरेशन नहीं किया गया, तो दर्द बहुत बढ़ेगा। यह जानलेवा भी हो सकता है। ऑपरेशन का जोखिम जरुर है, लेकिन यह जरूरी है।''
हमीर ने टालते हुए कहा, ''डॉक्टर साहब अम्मी कमजोर और बूढी हैं। क्या उनकी उम्र में इतना बड़ा ऑपरेशन ठीक रहेगा? अगर कुछ हो गया तो?''
आजी ने कमजोर आवाज में कहा, ''बेटा मैं मरने से नहीं डरती, लेकिन इस दर्द के साथ जीना बहुत मुश्किल है। जो होगा अल्लाह पर छोड़ दे।''
हमीर ने अनमने ढंग से कहा, ''डॉक्टर साहब, देखिए मैं अभी यह फैसला नहीं ले सकता।''
आखिरकार हमीर वहां से अस्पताल से चला गया।
डॉक्टर दयालु था। बिना खर्च लिए ऑपरेशन कर दिया। ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन आजी का दिल टूट चुका था। आजी ने अपने जीवन की उम्मीद छोड़ दी।
कुछ दिनों बाद, हमीर जब अपनी अम्मी को देखने आया, अम्मी ने मुस्काते हुए बस इतना ही कहा, ''आज मेरी उम्र और हालत तेरे लिए बोझ बन गया है। अल्लाह करे तुझे ऐसा बुढ़ापा नहीं देखना पड़े।''
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