दो कविताएं : ठहरो, अभी युद्ध की घोषणा मत करो
ठहरो, अभी युद्ध की घोषणा मत करो जरा ठहरो, अभी युद्ध की घोषणा मत करो ओ सभ्य कहलाने वाले देशों के जहांपनाहों, अभी रुक जाओ ओ बम गिराने वाले देश के कथित रक्षकों, अभी रुक जाओ ओ बदला लेने के लिए बेचैन देश के निर्णायकों, अभी रोक लो कदम क्योंकि अभी भी तुम्हारे कदम के नीचे पैर रखने के लिए हरी-भरी जमीन है क्योंकि अभी भी सांस लेने के लिए बह रही है शीतल हवा निरंतर ठहर जाओ ओ हिंसा के दूतों क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही तो तुम सभी के मुल्क में पैदा हुए हैं नन्हे बच्चे ठीक वैसे ही जैसे अभी कुछ महीने पहले ही हमारे पड़ोस में एक बच्ची ने लिया है जन्म ओ धरती को रक्तरंजित करने को आतुर शिकारियों युद्ध की घोषणा करने से पहले जरा अपने-अपने देश में पैदा हुए बच्चे के चेहरे की ओर तो देख लो जैसे मैं देखता हूं हमारे पड़ोसी के घर में अभी कुछ दिन पहले ही जन्म ले चुकी मासूम बच्ची के चेहरे की ओर जब भी देखता हूं उस नन्ही परी को अपलक वह मुझे देख मुस्कुरा देती है ...वह खिलखिलाने लगती है उसकी उस निश्छल हंसी को देख मैं न जाने कैसी चमत्कारी शक्तियों का स्वामी बन जाता हूं और आकाश की ओर देखकर सूरज को अपनी तपिश को कम करने का हुक