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कागज के फूल मुबारक

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फिल्म का चर्चित पोस्टर, साभार By Gulzar Hussain यह कहते हुए तो किसी को मुबारकबाद नहीं दी जा सकती, लेकिन गुरुदत्त (Guru Dutt)   ने तो यही कहते हुए सभी को नया साल मुबारक कहा था। हां, वर्ष 1959 में वह 2 जनवरी का दिन था, जब 'कागज के फूल' (Kaagaz Ke Phool) रिलीज हुई थी। मैंने इस फिल्म को फिर से नए साल पर देखा, तो मन भर आया। कैसे कहूं कि यह एक फिल्म भर है, मुझे तो यह एक कविता की तरह लगी ...एक सच्ची प्रेम कविता, जिसमें, प्रेम के स्नेहिल स्पर्श के साथ ही पैर के नीचे की जमीन अचानक लुप्त होने की बात है ...जिसमें झूठे-दिखावटी कार्यों से उपजी बेरुखी की बात है ...जिसमें केवल सफलता पाने के उद्देश्य से बनाई जा रही फिल्मों पर करारा व्यंग्य भी है। यह एक जादूई यथार्थवाद समेटे प्रेम कविता है, अगर यह कहानी होती, तो इसका कोई अंत संभव था, लेकिन इस कविता में तो एक तलाश है ...सिर्फ तलाश। प्रेम की तलाश में भटकता मन कभी बारिश की फुहार से बचने का प्रयास कर सकता है क्या? तब हमने फिल्म में केवल यही क्यों देखा कि गुरुदत्त बारिश से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे छुपते हैं, जहां, बारिश में भीगकर ठंड से कंपकंपाती