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बड़ी मां और प्रेमचंद की कहानियों की दुनिया

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Photo by hannah grace on Unsplash By Gulzar Hussain तब मैं बहुत छोटा था, जब मेरी बड़ी मां (चाची) मुझे प्रेमचंद की कहानियों के बारे में बताती थीं। जब वह प्रेमचंद की कहानियों पर चर्चा करतीं, तब मैं घोर आश्चर्य में पड़ जाता, क्योंकि वह पढ़ी-लिखी तो बिल्कुल भी नहीं थीं, फिर कैसे वह कहानियों पर विस्तार से बात कर पाती थीं?तब मैं मुजफ्फरपुर के उस गांव के स्कूल की किताब में पढ़ी गईं प्रेमचंद की कहानियों से ही परिचित था, लेकिन बड़ी मां का कहानी पर चर्चा करने का अंदाज ऐसा था कि मैं अनोखी दुनिया में पहुंच जाता था। वह हर कहानियों के मानवीय पहलू का जिक्र ऐसे करती थी कि आंखें भर आतीं थी। वह कहती- हामिद ऐसा बच्चा था कि उसे कोई खिलौना खरीदने का न सूझा और दादी का चूल्हे के पास बैठकर रोटियां सेंकने में होने वाली तकलीफ याद रही...आह, कैसा दिल वाला बच्चा था वह। मैं यह सुनकर भावुक हो जाता।   'ईदगाह' कहानी पर बोलते-बोलते उनकी आंखें भर आती थीं। हामिद का अपनी दादी के लिए चिमटा लाने का उत्साह हो या उसकी दादी की आंखों में आंसू आ जाने का दर्द हो, सब कुछ वह इस तरह सुनातीं कि कोई टीचर क्या सुनाएगा।   वह हर