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अभी अधूरा है सफदर का नुक्कड़ नाटक

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By Gulzar Hussain हां, वह जनवरी का ही महीना था, जब सफदर हाशमी उस नुक्कड़ नाटक को पूरा नहीं कर पाया था।  हां, ‘हल्ला बोल’ केवल नुक्कड़ नाटक ही नहीं था, बल्कि वह उसका सपना था। वह सपना अपने देश को और बेहतर बनाने का था। ...वह सपना मिलों-कारखानों में जानवरों की तरह पिसते मजदूरों को अधिकार दिलाने का था ...वह सपना झोंपड़ों में रहने वाले गरीब बच्चों के जीवन स्तर को उठाने का था, लेकिन तब सत्ता और सियासत के दमनचक्र ने उस सपने को कुचलने की कोशिश की। उस नुक्कड़ नाटक के दौरान ही सियासी गुंडों ने उसकी पूरी टीम पर हमला किया।  जब घायल होकर सफदर 2 जनवरी (1989) को दम तोड़ रहा था, तब वह अपना सपना अपने साथियों को सौंप रहा था। उसके और उसके साथियों के सपने घुल-मिलकर तूफानी सपने बन गए। सफदर की मौत के दो दिन बाद ही उसकी पत्नी मल्यश्री हाशमी उसी टीम के साथ दोबारा उसी जगह पर अधूरे नाटक को पूरा करने गई।  बस यही ...हां, यही साहस हर सपने को पूरा करने के लिए जरूरी है। सपने की कड़ी से कड़ी जुड़नी चाहिए। ...उसके बाद हम और हमारे बाद वे...ऐसे ही तेज होनी चाहिए सपनों को पूरा करने की रफ्तार... कौन कहता है कि 2 जनवरी को सफदर मर ग