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Showing posts from 2018

देश के बारे में चिंता करने को गद्दारी का नाम न दो

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Naseeruddin Shah/  YouTube ScreenGrab BY Gulzar Hussain मैं यह जानता हूं कि नसीरुद्दीन शाह ( Naseeruddin Shah)  की बात का बतंगड़ बनाकर जो चंद कट्टरपंथी संगठन बवाल किए हुए हैं, उनकी बात को गंभीरता से लिया जाना ठीक नहीं है। मुझे यह भी पता है कि नसीर ने देश की स्थिति पर चिंता जताते हुए जो बात कही है, वह कट्टरपंथियों के लिए कोई मुद्दा नहीं है, क्‍योंकि नसीर यदि इससे हट कर कुछ और कहते तो भी उनके विरोध में इसी तरह नफरतवादी गिरोह को आग उगलना ही था। लेकिन यदि वे कुछ और भी कहते, तो भी यह कट्टर गिरोह उन्‍हें ऐसे ही अपमानित करता। मसलन वे यदि बुलंदशहर पर न बोलकर अखलाक या जज लोया पर चिंता जताते या फिर दाभोलकर, गौरी लंकेश, रोहित वेमुला और गोविंद पानसरे को लेकर कुछ कहते तो क्‍या यह कट्टर गिरोह उन्‍हें चैन से रहने देता?  नसीरुद्दीन शाह ( Naseeruddin Shah)  ने बुलंदशहर हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा था कि एक पुलिस इंस्‍पेक्‍टर सुबोध सिंह की हत्‍या से ज्‍यादा गाय पर ध्‍यान दिया जा रहा है। लेकिन यदि वे कुछ और भी कहते, तो भी यह कट्टर गिरोह उन्‍हें ऐसे ही अपमानित करता। मसलन वे यदि बुलंदशहर पर न

कब कटेगी चौरासी: ज़ख़्म का समंदर समेटे पन्नों से गुजरना

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Book cover/ File photo By Gulzar Hussain 1984 में सिखों के खिलाफ हुए नरसंहार ( 1984 Sikh Genocide)  का सच जानने के लिए पत्रकार जरनैल सिंह की पुस्तक 'कब कटेगी चौरासी : सिख क़त्लेआम का सच' पढ़ना जरूरी है। किसी देश में अचानक अल्पसंख्यकों के खिलाफ इतनी नफरत और हिंसा कैसे भर जाती है, इसका हृदयविदारक चित्रण इस पुस्तक में है। दंगे के दौरान दिल्ली की सड़कों पर अपमानित, प्रताड़ित और निष्प्राण होते जाते सिखों की व्यथा को जरनैल ने बहुत गहराई से रखा है। दरअसल अल्पसंख्यकों के खिलाफ ऐसे नफरत भरे खूनी खेल को देखते हुए बड़े होने वाले हर जनरैल की किताब ठीक ऐसी ही होती। जरनैल ने देखा कि एक भीड़ द्वारा कैसे किसी की पगड़ी उछाल कर अपमानित करते हुए जान ली जा रही है...उसने देखा कि कैसे बच्चों और महिलाओं को भी धर्मान्धों की भीड़ नहीं बख्श रही है।  मैं शहर जब भी जाता तो ऐसी बस्तियों से गुजरता।  बाद में मुझे इस बात पर आश्चर्य होता कि उन खून से रंगे घरों और दुकानों में लोग अब शान्ति से कैसे रह लेते हैं? क्या उन लोगों को कभी यह तड़प नहीं होती कि इन्हीं घरों से कभी किसी को मारपीट कर भगा दिया गया है। 

In Pics: लहरों के किनारे मुस्‍कुराता गेटवे ऑफ इंडिया

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By Gulzar Hussain मुंबई (Mumbai) में लहरों के किनारे गर्व से खड़ा गेटवे ऑफ इंडिया ( Gateway of India ) सैलानियों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है। इसकी  स्थापत्य  कला की खूबसूरती का दीदार करने दूर- दूर से लोग आते हैं। यहां आकर कुछ लोग नौका विहार का आनंद लेते हैं, तो कुछ लोग समंदर किनारे मुस्‍कुराते गेटवे ऑफ इंडिया को आंखों में बसा लेते हैं। पिछले दिनों मैंने यहां की कुछ तस्‍वीरें ली हैं, जो आपके लिए पेश है।  (All Photos : Gulzar Hussain) Photo by Gulzar Hussain All Photos : Gulzar Hussain

Assembly election: फेल हुई मंदिर- मस्जिद की राजनीति, रोजी- रोटी की बात हो

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प्रतीकात्मक तस्वीर/ File photo दरअसल यह समझना बेहद आसान है कि कौन सी पार्टी किस मुद्दे से बचने के लिए किस मुद्दे का सहारा ले रही है। यह सही है कि भाजपा जब सत्‍ता में आई थी, तो किसानों- खेतिहरों और रोजगार से जुड़ी समस्‍याओं को दूर करना उसके लिए बड़ी चुनौती थी, लेकिन उसने इस चुनौती से मुंह चुराना ही जारी रखा।  Viewpoint  : GuLzar Hussain पांच राज्‍यों में हुए विधानसभा चुनावों ( Assembly election )  में भाजपा की करारी शिकस्‍त सभी पार्टियों के लिए एक सबक भी है। इन चुनाव नतीजों से यह बात तो पूरी तरह साफ हो गई है कि जनता को मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Politics) नहीं, बल्कि से रोजी- रोटी की जरूरत पूरी करने वाली सरकारें चाहिए। देश की नई पीढ़ी ने साफ तौर पर यह देखा कि भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए कैसे- केसे हथकंडे अपनाए। कभी भाजपा ने मंदिर- मस्जिद के मुद्दे को हवा दी, तो कभी गाय के बहाने एक सांप्रदायिक गोलबंदी करने का प्रयास किया, लेकिन देश की जनता ने सारे व्‍यर्थ मुद्दों वाले गुब्‍बारे की हवा निकाल दी। आखिकरकार जनता ने यह समझ लिया कि भाजपा ने पिछले चार सालों में ऐसा कोई काम नहीं किया

चैत्‍यभूमि पर बाबासाहेब आंबेडकर के चाहने वालों का पुस्‍तक प्रेम

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Photo by Gulzar Hussain सबसे अधिक भीड़ शिवाजी पार्क में लगे पुस्‍तक मेले में थी। बाबासाहेब लिखित और आंबेडकरवादी साहित्‍य को खरीदने के लिए लोग लाइन लगा कर खड़े थे। यहां बाबासाहेब की हर प्रसिद्ध पुस्‍तक उपलब्‍ध थीं। मराठी, अंग्रेजी से लेकर हिंदी तक, सभी तरह की किताबें यहां थी और थी उत्‍सुक पाठकों की भीड़।   By Gulzar Hussain मुंबई के दादर रेलवे स्‍टेशन से चैत्‍यभूमि ( Chaitya Bhoomi)   की ओर जाने वाली राह पर दिन भर बाबासाहेब आंबेडकर ( Babasaheb Ambedkar ) के चाहने वालों का तांता लगा रहा। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर दूर- दूर से चैत्‍यभूमि पहुंच कर लोग उन्‍हें श्रद्धांजलि दे रहे थे और जय भीम के नारे लगा कर अपना प्रेम प्रदर्शित कर रहे थे। Photo: Gulzar Hussain चैत्‍यभूमि तक जाने वाली सड़क के दोनों ओर बाबासाहेब की तस्‍वीरें, उनकी प्रसिद्ध किताबें और गौतम बुद्ध की मूर्तियों की दुकानें सजी थीं। लोग खरीदारी करने में व्‍यस्‍त थे। जगह- जगह बिस्‍कुट- चाय के अलावा अन्‍य नाश्‍ते की सामग्री मुफ्त बांटी जा रही थी, ताकि दूर- दराज से आए लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो।

Bulandshahr violence:आदमखोर भीड़ के मुंह इंसान का खून किसने लगाया?

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आदमखोर गिरोह के मुंह इंसान का खून लग गया है, इसलिए यह अखलाक हो या सुबोध, किसी को नहीं बख्‍श रहा है। आखिरकार उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahr) में फिर यह गिरोह गाय के नाम पर उग्र हुआ और न्‍यायप्रिय इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह (Subodh Kumar Singh) की खून पीकर ही माना। Symbolic  Photo by  Hasan Almasi  on  Unsplash Viewpoint :  Gulzar Hussain कहते हैं कि आदमखोर जानवर के मुंह एक बार खून लग जाए, तो वह खून का प्‍यासा हो जाता है। ऐसा ही कुछ गाय के नाम पर हिंसा फैलाने वाले गिरोह के साथ हो गया है। इस आदमखोर गिरोह के मुंह भी इंसान का खून लग गया है, इसलिए यह अखलाक हो या सुबोध, किसी को नहीं बख्‍श रहा है। आखिरकार उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahar) में फिर यह गिरोह गाय के नाम पर उग्र हुआ और न्‍यायप्रिय इंस्‍पेक्‍टर सुबोध कुमार सिंह (Subodh Kumar Singh) की खून पीकर ही माना। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस आदमखोर गिरोह के मुंह इंसान का खून लगाया किसने? गाय के नाम पर राजनीति करके अफवाहों की आड़ में इंसानों को मरवाने का सिलसिला शुरू किया किसने? एक खास किस्‍म की कट्टर रा

A Sunset of the City: दादर चौपाटी की रेत पर

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Photo by Gulzar Hussain By Gulzar Hussain घोड़े पर एक छोटी सी लड़की बैठी है...वह जोर जोर से खिलखिला रही है ...घोड़े का लगाम थामे एक युवक उसे समुद्री रेत पर इधर से उधर ले जा रहा है ...रेत पर बैठे लोग भुट्टे और भेलपुरी खाते हुए समंदर की ठंडी हवा का आनंद ले रहे हैं ...कुछ बच्‍चे रेत का महल बना रहे हैं और कुछ बच्‍चे रेत में पैर घुसाकर मुस्‍कुरा रहे हैं ...तभी एक तमाशा दिखाने वाली लड़की मेरे नजदीक आ खड़ी होती है ...मैं उसकी आंखों में पसरा दुख देखने की कोशिश करता हूं ... Photo by Gulzar Hussain Photo by Gulzar Hussain Photo by Gulzar Hussain हां, यह मुंबई का एक प्रसिद्ध समंदर का किनारा है-दादर चौपाटी ( Dadar Chowpatty) । लोग डूबते सूरज को (Sunset) देखने के लिए बेसब्र हुए जा रहे हैं। अब थोड़ी ही देर में सूरज डूबने लगेगा और इसकी चमक फीकी पड़ जाएगी। दादर का समुद्र तट बाबासाहेब आंबेडककर की चैत्‍यभूमि से थोड़ी दूर पर है, तो जो लोग बाबासाहेब की चैत्‍यभूमि पर आते हैं वे समंदर की रेत पर टहलकर सूर्यास्‍त का भी आनंद ले लेते हैं। रेत पर चाट और भेलपुरी की दुकानों के पास ही ग

अनाज उपजाने वाले किसान परेशान, लेकिन मॉल में अनाज बेचने वाले पूंजीपति मालामाल क्‍यों?

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Photo by  Nandhu Kumar  on  Unsplash उन्‍हें आशा है कि एक दिन ऐसा सूरज उगेगा कि उसकी रोशनी में खेतों में काम करते हुए उनके मन में निराशा का भाव पैदा नहीं होगा।  Analysis by Gulzar Hussain  दिल्‍ली की सड़कों पर आक्रोशित किसानों (Kisan Mukti March) की आंखों में छलकती पीड़ा और बेबसी देखिए, जिन्‍हें वे अपने जोशीले नारों से छुपाना चाह रहे हैं। वे उत्‍साह से कदम बढ़ाकर आगे बढ़ रहे हैं कि उनकी मांगें सुनी जाएंगी ...उन्‍हें आशा है कि एक दिन ऐसा सूरज उगेगा कि उसकी रोशनी में खेतों में काम करते हुए उनके मन में निराशा का भाव पैदा नहीं होगा। लेकिन इन सबके बावजूद उनके मन में एक टीस सी तो उठती ही है कि आखिर उनके मन की पीड़ा और तकलीफ को समझने वाला कहां कोई है। यह बहुत बड़ी मांग तो नहीं है, उस देश की सत्‍ता के लिए, जहां अरबों की रकम खर्च कर एक से बढ़कर एक विशाल मूर्तियां स्‍थापित करने की होड़ लगी हैं।  एक बार फिर देश के कोने- कोने से हजारों किसान दिल्‍ली की सड़कों पर पहुंचे हैं अपनी छोटी- छोटी मांगों के साथ, लेकिन इन मांगों को पूरा किया जाएगा ऐसा नहीं लगता। किसान चाहते हैं कि उनके कर्ज पूरी

क्‍या देशवासियों को लड़ाने की साजिश है मंदिर- मस्जिद की राजनीति? क्‍या कहता है संविधान?

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संविधान के अनुच्‍छेद 51(क) के अंतर्गत सभी नागरिकों का यह कर्तव्‍य है कि वे भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्‍ण रखें।  By  Gulzar Hussain देश की एकता (Unity) और भाइचारे के ताने- बाने को छिन्‍न भिन्‍न करने की साजिश रचना देश के साथ गद्दारी है। किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन को यह अधिकार नहीं है कि वह देश की एकता और संप्रभुता के साथ किसी भी बहाने खिलवाड़ करे। चाहे वह धर्मांधता का बहाना हो या मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Politics) हो, इन सबकी आड़ में देशवासियों को आपस में लड़ाने का खेल बेहद खतरनाक और घटिया है। Symbolic Photo by  rawpixel  on  Unsplash आज जिस तरह हमारे देश के न्‍यायप्रिय संविधान का अपमान करते हुए एक विशेष संगठन और पार्टी के लोग मंदिर- मस्जिद की राजनीति ( Ramjanmabhoomi-Babri Masjid  dispute )  के बहाने सांप्रदायिकता को हवा दे रहे हैं, वह बेहद खतरनाक है। भारत के लोगों का इसी मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Mandir Masjid politics) के नाम पर पहले भी बहुत अहित हुआ है, इसलिए जनता को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। जिस तरह पिछले दिनों कई नेताओं की त

देशवासियों की सुरक्षा के लिए अयोध्‍या में फौज तैनात करने की अखिलेश की सलाह कितनी वाजिब?

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By  Gulzar Hussain एक तरफ जहां भाजपा मंदिर- मंस्जिद की राजनीति में लगी है, वहीं दूसरी तरफ उत्‍तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav)  ने इस मुद्दे पर जानमाल के नुकसान पर चिंता जताकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अखिलेश ने मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर आगे बढ़ रही भाजपा के बारे में कहा है कि वह किसी हद तक जा सकती है, इसलिए उन्‍होंने अयोध्‍या में फौज लगाकर लोगों सुरक्षा करने की मांग की है। ऐसे समय में जब चुनाव प्रचार को लेकर सभी पार्टियां अपनी- अपनी राह तलाश रही हैं, तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव की यह चिंता कितनी वाजिब है? File photo: Akhilesh Yadav  यह तो स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा है कि भाजपा अपने 'सबका साथ सबका विकास' के मुद्दे से पूरी तरह पीछा छुड़ाकर मंदिर- मस्जिद की राजनीति को उभारने पर लगी है।  यह तो स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा है कि भाजपा अपने 'सबका साथ सबका विकास' के मुद्दे से पूरी तरह पीछा छुड़ाकर मंदिर- मस्जिद की राजनीति को उभारने पर लगी है। ज्‍यादातर टीवी चैनल्‍स पर भी इसी मुद्दे को हवा दी जा रही है, और एक तरह की सांप्रदायिक राजनीति के पैर पस

निदा फ़ाज़ली: मीठी आवाज वाले शायर

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...उस समय कई लोग साहित्यकार साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद लौट रहे थे। मैं भी वहीं से लौट रहा था। मैं पत्रकार मित्र अरुण लाल के साथ बातें करता हुआ चल रहा था, तभी मैंने उनको प्लेटफार्म पर बैठे हुए देखा। Symbolic Photo by  Debby Hudson  on  Unsplash By Gulzar Hussain मैं उस मीठी आवाज वाले शायर से मुंबई के रे रोड स्टेशन पर मिला था। तब हमेशा की तरह उनका चेहरा किसी बच्चे की तरह खिला-खिला नहीं था।  हां, उस रोज निदा फ़ाज़ली ( Nida Fazali)   साहब उदास बैठे थे। ... उस समय कई लोग साहित्यकार साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद लौट रहे थे। मैं भी वहीं से लौट रहा था। मैं पत्रकार मित्र अरुण लाल के साथ बातें करता हुआ चल रहा था, तभी मैंने  निदा फ़ाज़ली को प्‍लेटफार्म  पर बैठे हुए देखा। वे भी साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद ट्रेन पकड़ने वहां आए थे। हम  तेजी से उनकी ओर लपके और बातें करने लगे। वे हमारी सभी बातों का जवाब बहु त सहजता से देने लगे।  मैंने उनसे साजिद रशीद के जनाजे में कई बड़े साहित्यकारों- पत्रकारों के नहीं पहुंचने की बात कही, तो उ

Demonetisation: नोटबंदी को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत से उबरने' जैसे बयान का सहारा क्‍यों?

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BY  Gulzar Hussain एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी (Demonetisation) को सही ठहराने के लिए 'बेटे की मौत से उबरने' जैसा भाषण दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कृषि मंत्रालय ने माना है कि नोटबंदी से किसानों को संकट का सामना करना पड़ा है। हालांकि मीडिया में नोटबंदी से हुई किसानों की दुर्दशा की खबर फैलने के बाद कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने अपने एक ट्वीट में इन तथ्‍यों से इनकार कर दिया है। तो अब ऐसी दोमुंही स्थिति में पीएम मोदी की बात का क्‍या मतलब निकाला जाए? क्‍या नोटबंदी को सफल बताने का पैमाना काले धन का आंंकड़ा प्रस्‍तुत करना नहीं होना चाहिए था, जिस पर तो कोई बयान ही नहीं दिया जा रहा है। File Photo खबर है कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मोदी लगभग 25 रैलियां कर रहे हैं, जिनमें वे मुख्‍य निशाने पर कांग्रेस को रखकर चल रहे हैं। एक रैली में मोदी ने नोटबंदी का बखान करते हुए कह दिया कि केवल कांग्रेस परिवार को नोटबंदी से तकलीफ हुई है क्‍योंकि उनके जमा रुपए निकल आए। इसके अलावा उन्‍होंने कहा कि जवान बेटे की मौत से बूढ़ा बाप एक साल मे

राज कपूर और नर्गिस के प्रेम-दृश्यों में बिखरा दर्द

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नायिका (नर्गिस) की बेचैन आंखों में बचपन के साथी के मिल जाने से जो स्वतःस्फूर्त समर्पण का भाव उमड़ता है, वह प्रेम में पड़ी स्त्री के विद्रोह को भी दर्शाता है। BY  Gulzar Hussain पचास के दशक की चर्चित फिल्‍म 'आवारा' ( Awaara)  में राजकपूर   ( Raj Kapoor ) और नर्गिस   ( Nargis ) के प्रेम -दृश्य जितने सुहाने लगते हैं, उससे अधिक उन दृश्यों में कोई दुःख पसरा प्रतीत होता है। इनके प्रेम-दृश्यों में आप कई बार एक चुभता सा दर्द महसूस कर सकते हैं।   Awaara  का एक दृश्‍य/ साभार File photo एक घुटन सा या कोई अपराध बोध वहां रोमांटिक दृश्यों पर हावी होता सा प्रतीत होता है। राजकपूर की फीकी और रहस्यमयी मुस्कान उसके बचपन की तकलीफों को सामने लाती है। दूसरी ओर नायिका (नर्गिस) की समर्पित मुस्कान और आनंदातिरेक में डूबती आंखों में एक मंजिल पा जाने की झलक मिलती है। नर्गिस की बेचैन आंखों में बचपन के साथी के मिल जाने से जो स्वतःस्फूर्त समर्पण का भाव उमड़ता है, वह प्रेम में पड़ी स्त्री के विद्रोह को भी दर्शाता है। वह अपने चेहरे को दोनों हथेलियों से ढक लेता है और धीरे -धीरे हथेलियों को खिसका कर उ

क्‍या चाहते हैं लालू यादव के खिलाफ साजिश रचने वाले? CBI निदेशक के भंडाफोड़ से उठे सवाल

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नीतीश के नाक के नीचे हुआ यह खेल, कितना रंग लाएगा तेजस्‍वी यादव का गुस्‍सा? लालू यादव बिहार चुनाव के दौरान 'बंच ऑफ थॉट्स' लेकर घूम रहे थे  पुख्‍ता सबूत नहीं होने के बावजूद मामला दर्ज कराने के लिए बेहद जल्‍दबाजी  अपने खास बिहारी अंदाज से दिया था झटका BY  Gulzar Hussain CBI निदेशक आलोक वर्मा ने बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू यादव के खिलाफ रची जा रही साजिश का भंडाफोड़ कर भाजपा के बड़े नेताओं को कठघरे में खड़ा कर दिया है। वहीं इस मुद्दे को लेकर सबसे जरूरी सवाल यह है कि आखिर लालू यादव के खिलाफ साजिश रचने वाले चाहते क्‍या हैं? वर्मा ने यह भी आरोप लगाया है कि बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को इन सारे मामले की जानकारी थी। इस खुलासे के बाद आक्रोशित राजद नेता तेजस्‍वी यादव ने भाजपाइयों के साथ- साथ नीतीश कुमार पर भी जमकर निशाना साधा है। दूसरी ओर इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर भी तूफान मच गया है। लालू यादव के समर्थन में लोग खुलकर लिख रहे हैं। सफलता के दिनों की खुशी/ File photo: Lalu yadav CBI निदेशक आलोक वर्मा ने जिस तरह पीएमओ के साथ बिहार के भाजपा नेता सुशील मोदी पर ला

बाल दिवस पर बच्‍चों को उदास कर गई यह खबर, नहीं रहे स्‍पाइडर मैन के रचयिता Stan Lee

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बच्‍चों के चहेते स्पाइडर मैन, हल्‍क, आयरन मैन, ब्लैक पैंथर, और एवेंजर्स जैसे साहसी सुपरहीरो ली की बेहतरीन कल्‍पनाशक्ति की ही उपज थे। बच्‍चे जिस स्‍पाइडरमैन के सा‍हसिक कारनामों को देखकर दांतों तले उंगली दबा लेते थे उस स्‍पाइडरमैन के रचयिता स्टैन ली (Stan Lee) अब इस दुनिया में नहीं रहे। ली का देहांत सोमवार को हुआ और आज बाल दिवस पर बच्‍चों को यह खबर बेहद उदास कर गई। Stan Lee/  File photo ली केवल स्‍पाइडरमैन के जनक ही नहीं, बल्कि 'एक्समैन', 'एवेंजर्स' और 'ब्लैक पैंथर' के निर्माता भी थे। ली बहुत कम उम्र 1939 में 'मार्वल' कॉमिक्स से जुड़ गए थे और आखिरी वक्त तक कॉमिक्स से उनका जुड़ाव रहा। बच्‍चों के चहेते स्पाइडर मैन, हल्‍क, आयरन मैन, ब्लैक पैंथर, और एवेंजर्स जैसे साहसी सुपरहीरो ली की बेहतरीन कल्‍पनाशक्ति की ही उपज थे। ली  अपने कैरेक्टर पर बनी फिल्मों में छोटी सी भूमिका भी किया करते थे। 'एवेंजर्स: इनफिनिटी वॉर' में ली एक ड्राइवर के रोल में  दिखे थे।  ऑस्ट्रेलियाई फिल्मकार जेम्स वॉन ने ट्वीट किया है कि ली सही मायने में महान थे। अब मेरे द