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नफरत फैलाने की हर साजिश को नाकाम कैसे करते हैं हम भारतवासी?

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  Photo by Noorulabdeen Ahmad on Unsplash -गुलजार हुसैन आपने कभी सोचा है कि नफरत फैलाने की हर गहरी साजिश को हमारे देश के लोग आखिरकार नाकाम कैसे कर देते हैं? किन साहित्यकारों और फिल्मकारों का नाम आप लेना चाहेंगे, जिन्होंने अपनी कला और विचार से देश की एकता रूपी पेड़ की जड़ों को इतना मजबूत बनाए रखा है कि डालियों-पत्तियों को नष्ट किए जाने के बावजूद ये फिर से उगकर हरियाली फैला देते हैं। मैं शुरू से सोचता हूं तो प्रेमचंद से लेकर राजेंद्र यादव तक कई साहित्यकारों के नाम मन में आ जाते हैं। इनसे पहले जाएं, तो उस एक जुलाहे कबीर का नाम मेरे मन में गूंजता है, जिसने अपने दोहों से भारत के बड़े भू-भाग को एक डोर में पिरोए रखा। उसने हर कट्टरता और धर्मांधता को इतना तुच्छ बना दिया कि यह एक परंपरा बन गई कि जो भी कबीर के दोहों के साथ है, वह मानवता के साथ है। कौन किस धर्म या जाति का है, राजा है या प्रजा है इसका कोई मायने नहीं है। जो इंसान है, वही जीने लायक है। तभी तो उन्होंने लिखा- 'प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए, राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस देही ले जाए।' इसके अलावा, प्रेमचंद के पात्रों के व्यव