निदा फ़ाज़ली: मीठी आवाज वाले शायर
...उस समय कई लोग साहित्यकार साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद लौट रहे थे। मैं भी वहीं से लौट रहा था। मैं पत्रकार मित्र अरुण लाल के साथ बातें करता हुआ चल रहा था, तभी मैंने उनको प्लेटफार्म पर बैठे हुए देखा।
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By Gulzar Hussain
मैं उस मीठी आवाज वाले शायर से मुंबई के रे रोड स्टेशन पर मिला था। तब हमेशा की तरह उनका चेहरा किसी बच्चे की तरह खिला-खिला नहीं था। हां, उस रोज निदा फ़ाज़ली (Nida Fazali) साहब उदास बैठे थे। ...उस समय कई लोग साहित्यकार साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद लौट रहे थे। मैं भी वहीं से लौट रहा था। मैं पत्रकार मित्र अरुण लाल के साथ बातें करता हुआ चल रहा था, तभी मैंने निदा फ़ाज़ली को प्लेटफार्म पर बैठे हुए देखा। वे भी साजिद रशीद के जनाजे में शामिल होने के बाद ट्रेन पकड़ने वहां आए थे। हम तेजी से उनकी ओर लपके और बातें करने लगे। वे हमारी सभी बातों का जवाब बहुत सहजता से देने लगे।
मैंने उनसे साजिद रशीद के जनाजे में कई बड़े साहित्यकारों- पत्रकारों के नहीं पहुंचने की बात कही, तो उन्होंने कहा, ‘यह बंबई है, यहां कई बार लोग चाहते हुए भी कहीं पर समय से पहुंच नहीं पाते। लेकिन देखो, कई बड़े उर्दू के राइटर तो यहां मौजूद हैं ...देखो...’
यह बात सही थी कि साजिद साहब के जनाजे में बहुत भीड़ उमड़ी थी, लेकिन उनमें लेखक- पत्रकार कम ही थे। अलबत्ता कई मशहूर चेहरे हमने जरूर वहां देखे थे, फिर भी एक कसक सी मन में थी कि साजिद केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दों और वंचित जनता के हक के लिए आवाज उठाने वाले पत्रकार भी थे। फिर कलम की दुनिया के उनके फैन्स या संगी- साथी बड़ी संख्या में वहां क्यों नहीं आए थे।
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Nida Fazali / File photo |
यह बात सही थी कि साजिद साहब के जनाजे में बहुत भीड़ उमड़ी थी, लेकिन उनमें लेखक- पत्रकार कम ही थे। अलबत्ता कई मशहूर चेहरे हमने जरूर वहां देखे थे, फिर भी एक कसक सी मन में थी कि साजिद केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दों और वंचित जनता के हक के लिए आवाज उठाने वाले पत्रकार भी थे। फिर कलम की दुनिया के उनके फैन्स या संगी- साथी बड़ी संख्या में वहां क्यों नहीं आए थे।
उस समय कई मुद्दों पर संक्षेप में चर्चा हुई। ...हां, उनकी रूट की ट्रेन के आने से पहले मैंने उनसे जब एक बात कही कि आपकी गज़़ल सुनते-पढ़ते हुए बड़े हुए हैं हम, तब वे मुस्कुराते हुए उठे और मेरा नाम दोबारा पूछा। फिर ट्रेन में चढ़ते हुए कहा, मिलना...खूब बातें करेंगे।
आज वे हमारे बीच नहींं हैं, लेकिन उनकी लिखी कई पंक्तियां हमेशा के लिए दिल
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
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धूप तो धूप है फिर उस से शिकायत कैसी
अबकी बारिश में कुछ पेड़ उगाना साहब
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अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये
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मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
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दीवार-ओ-दर से उतर के परछाइयाँ बोलती हैं
कोई नहीं बोलता जब तनहाइयाँ बोलती हैं
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