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Showing posts from January 7, 2024

शमीमा हुसैन की लघुकथा : ओ रेसलर

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Photo by fariba gh on Unsplash बीना बहुत देर से मूर्ति की तरह बैठी थी। उसकी आंखों के सामने मानो सिनेमा की तरह दृश्य आ-जा रहे थे। उसे यह यादों का सिनेमा बहुत ही अच्छा लग रहा था। उसे इस सिनेमा में एक छोटी लड़की दिखाई देती है। वह लड़की लाल लहंगा पहने हुए, लाल बिंदी लगाकर और लाल सैंडल पहनकर खूब खुश है। सिनेमा में एक लंबी छरहरी महिला भी आती है। उसके बोलने की अदा से बीना समझ जाती है। वह मां है। मां आती हैं और बोलती है, ''हर पार्टी- त्योहार, फंक्शन, शादी सब दिन सभी कार्यक्रम में यही लाल लहंगा और यही लाल बिंदी पहनती हो।''  मां गुस्से में है, ''तुम्हारे पास पीला और ब्लू लहंगा भी है, वह क्यों नहीं पहनती हो।''  मां अपने बाल में जोर-जोर से कंघी करने लगती है। इस दृश्य में पापा भी हैं। वह चिल्लाकर बोलते हैं, ''जल्दी चलो। चलना है कि नहीं। देर करोगी तो शादी समारोह खत्म हो जाएगा।'  मां तुरंत जवाब देती है, ''हां आती हूं। इस लड़की को समझाकर हार गई हूं।''  बीना को सजना-संवरना बहुत पसंद था। बिना जब तीसरी क्लास में गई, तो वह अचानक बदल गई। उसने सजन

लघुकथा : उसकी पीठ की धारियां

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Photo by  Aaron Burden  on  Unsplash उसने जिस दिन अपनी पीठ दिखाई थी, उस दिन हम फिर से स्कूल की पीछे छूट गई दुनिया में लौटने लगे. उसकी पीठ पर जेब्रा के शरीर की तरह धारियां थीं. पूरी पीठ धारियों से भरी थी. ये धारियां हल्की थीं, लेकिन स्थायी थीं. ये धारियां उसे स्कूल के किसी भयावह दिन में ले गईं. वह मेरी ओर बिना देखे बोलता रहा और मैं आश्चर्य से उसके चेहरे को पढ़ता रहा. यह उन दिनों की बात थी जब हम दोनों आठवीं कक्षा में थे. किसी दिन उसने अपना होमवर्क ठीक से नहीं किया था. शायद इतनी सी ही बात थी या इससे भी छोटी कोई वजह. अंग्रेजी का वह शिक्षक उस दिन किसी निर्दयी हमलावर में तब्दील हो गया था. मजबूत छड़ी से शिक्षक ने उसकी पीठ पर वार करना शुरू किया. वह चीख रहा था ...गिड़गिड़ा रहा था, लेकिन उसने एक नहीं सुनी. वह तबतक उसे पीटता रहा जब तक उसकी शर्ट खून से लाल नहीं हो गई. टिफिन की घंटी बजी, तो छड़ी थम गई, लेकिन उसकी सिसकियाँ नहीं थमीं. मैं दूसरे सेक्शन में था इसलिए मुझे कुछ पता नहीं था.  'लेकिन तुमने उसका विरोध क्यों नहीं किया?' मैंने पानी का गिलास अपने होंठों से लगाते हुए कहा.   उसके चेहरे पर हल