शमीमा हुसैन की लघुकथा : ओ रेसलर
Photo by fariba gh on Unsplash बीना बहुत देर से मूर्ति की तरह बैठी थी। उसकी आंखों के सामने मानो सिनेमा की तरह दृश्य आ-जा रहे थे। उसे यह यादों का सिनेमा बहुत ही अच्छा लग रहा था। उसे इस सिनेमा में एक छोटी लड़की दिखाई देती है। वह लड़की लाल लहंगा पहने हुए, लाल बिंदी लगाकर और लाल सैंडल पहनकर खूब खुश है। सिनेमा में एक लंबी छरहरी महिला भी आती है। उसके बोलने की अदा से बीना समझ जाती है। वह मां है। मां आती हैं और बोलती है, ''हर पार्टी- त्योहार, फंक्शन, शादी सब दिन सभी कार्यक्रम में यही लाल लहंगा और यही लाल बिंदी पहनती हो।'' मां गुस्से में है, ''तुम्हारे पास पीला और ब्लू लहंगा भी है, वह क्यों नहीं पहनती हो।'' मां अपने बाल में जोर-जोर से कंघी करने लगती है। इस दृश्य में पापा भी हैं। वह चिल्लाकर बोलते हैं, ''जल्दी चलो। चलना है कि नहीं। देर करोगी तो शादी समारोह खत्म हो जाएगा।' मां तुरंत जवाब देती है, ''हां आती हूं। इस लड़की को समझाकर हार गई हूं।'' बीना को सजना-संवरना बहुत पसंद था। बिना जब तीसरी क्लास में गई, तो वह अचानक बदल गई। उसने सजन