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प्रेमचंद के साहित्य में कैसे हैं गाँव -देहात ?

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                                                                 - गुलज़ार हुसैन कहानी और उपन्यास की दुनिया भले ही प्रेमचंद युग से काफी आगे निकल गई है ...बहुत बदल भी गई है, लेकिन प्रेमचंद अब भी प्रासंगिक हैं। गरीब किसानों,मजदूरों और गांवों के दबे-कुचले लोगों के दुख -दर्द को जितनी गहराई से प्रेमचंद ने उठाया,उस तरह उनके समकालीन और उनके बाद के साहित्यकार नहीं उठा सके। सच तो यह भी है कि प्रेमचंद के नक्शे-कदम पर चलने वाले साहित्यकार भी उनकी लेखनी सा प्रभाव और जनप्रिय शैली नहीं पा सके। गरीब किसानों की समस्या को समझने और गांवों में दलितों -पिछड़ों के दैनिक संघर्षों को बेहद संवेदनात्मक तरीके से उजागर करने की अद्भुत कला प्रेमचंद के पास थी। वे खेतिहर मजदूरों के संघर्षों के साथ ही उनकी पारिवारिक और सामाजिक स्थिति को भी बड़ी गहराई से चित्रित करते थे। उनके पात्र इतने जीवंत होते थे कि पाठक उनके दुखों- सुखों से खुद को आसानी से जोड़ पाते थे। इसका सबसे अच्छा उदाहरण उनका कालजयी उपन्यास 'गोदान' है। 'गोदान' का मुख्य पात्र होरी हिंदी साहित्य ही नहीं विश्व साहित्य में परिचित नाम है। होरी क