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Showing posts from October 28, 2018

Annihilation of caste: जातीय ताकत से बनाए गए यातना शिविरों को तोड़ने वाली पुस्‍तक

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By   Gulzar Hussain पहली बार जब मेरी आंखों के सामने इस पुस्तक के पन्ने दर पन्ने खुले थे, मेरे रोंगटे खड़े होते चले गए। मैं इतनी गहराई से प्रभावित करने वाले तर्कयुक्त वैज्ञानिक सिद्धांतों से पहली बार रू-ब-रू हुआ था। पतली सी पुस्तक ‘जाति भेद का उच्‍छेद’ ( Annihilation of caste)  के हर पन्ने में जातीय भेदभाव से मुक्ति पाने के सबसे सटीक, तार्किक उपाय और विचार मौजूद थे।  इस पुस्तक में हर पन्नों के साथ ही वंचित जनों पर अत्याचार करने वालों के षड् यंत्र भी परत दर परत उघड़ते चले जा रहे थे।    देश की सबसे बड़ी समस्‍याओं में से एक जातिवाद को मिटाने के लिए इस पुस्तक को स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की जरूरत है। ...ताकि इससे देश में ताकतवर जातीय समूह की ओर से होने वाली आॅनर किलिंग और भेदभाव को जड़ से मिटाया जा सके ...ताकि जातीय दंभ का सहारे कोई सत्‍ता कभी जनता पर जुल्‍म न कर सके। इस पुस्तक को हर बार पढ़ने के बाद यही लगा कि देश के हर छात्र को यह पढ़ना जरूरी है।  इस पुस्‍तक में, जो कि बाबासाहेब का एक भाषण का छपा रूप  है,  जातीय ताकत से बनाए गए यातना शिविरों को तोड़ने की पूरी क्षमता ह

वे कांचा इलैया और रामचंद्र गुहा से डरते हैं या इसी बहाने लोगों को डराते हैं?

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Gulzar Hussain हाल ही में लेखक कांचा इलैया और इतिहासकार रामचंद्र गुहा को जिस तरह हाशिए पर करने की कोशिश हुई है, उससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं।   पिछले दिनों इलैया की पुस्‍तकों को दिल्‍ली यूनिविर्सिटी से हटाने के प्रस्‍ताव और एबीवीपी के दबाव के बाद रामचंद्र गुहा के अहमदाबाद यूनिवर्सिटी से हटने के मुद्दे पर हर तरफ चर्चा हो रही है। दरअसल लेखकों से इस तरह का व्‍यवहार यह दर्शाता है कि या तो इन लेखकों से सत्‍ताधारी ताकतें डर रही हैं, या फिर वे इसी बहाने लोगों को डराना चाहती हैं। कांचा इलैया/ फोटो- फेसबुक से साभार इलैया की जिन पुस्‍तकों को किसी धर्म विशेष के खिलाफ मानकर उन पर निशाना कसा जा रहा है, वे तो देश की प्रमुख समस्‍याओं को दूर करने के उद्देश्‍य से लिखी गईं हैं। इन उद्देश्‍यों में जातिवाद से मुक्ति की राह भी शामिल है। 'व्हाय आई एम नॉट अ हिंदू', गॉड एज पॉलिटिकल फिलॉसफर' और 'पोस्ट-हिंदू इंडिया' को हटाने का फैसला किया गया है, लेकिन इन्‍हें हटाने के पीछे जो तर्क दिया जा रहा है, वह बेहद कमजोर है। यह साफ है कि किसी कट्टर राजनीतिक विचारधारा की राह में ये किताब

डूमन राय को जानने के लिए उसका पता जानने की जरूरत नहीं है

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(कविता: गुलजार हुसैन) Photo:  Gulzar Hussain/ Mumbai डूमन राय को जानने के लिए उसका पता जानने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि वह खड़ा है हर शहर के हर मोहल्‍ले में हर गली की सड़क के किनारे गौर से देखिए, वह देश के हर सीवर के पास खड़ा है खाली पैर तपती सड़क से तलुवों में पड़ने वाले फफोलों से अनजान क्‍यों‍कि उसे पता है कि जिस सीवर में वह उतरेगा, वहां उसके तलुवे ही नहीं, उसकी आंखें भी गंदे कीचड़ से भर जाएंगी और सीवर की जहरीली गैस से उसका सर चकराने लगेगा यह सब जानने के बावजूद वह उतरेगा सीवर में क्‍योंकि 32 साल के जवान डूमन राय के कंधे पर है घर के लोगों का पेट भरने की जिम्‍मेदारी वह उतरेगा उस जानलेवा अंधकार से भरे सीवर में क्‍यों‍कि उसकी आंखों में बसी है भूख सहकर तड़पते उसके बच्‍चे की फीकी मुस्‍कान वह गंभीर त्‍वचा रोग देने वाली गंदगी में उतरेगा निर्वस्‍त्र ही क्‍योंकि इसके अलावा उसके पास कुछ करने का विकल्‍प नहीं छोड़ा गया है कि वह इस सीवर से दूर भाग जाएगा तो कोई दूसरा डूमन राय वहां खड़ा हो जाएगा खाली पैर, खाली पेट यह सच वह जानता है और उससे काम करवाने वाला मूंछ ऐंठता ठेक