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Showing posts from November 4, 2018

लघुकथा: छल (CHHAL: A Short story)

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‘मैंने कोई छल नहीं किया...बस तुम्हें ऐसा लगता है...और क्या हमारे बचपन का प्यार इस तरह से टूट जाएगा ...एक छोटी सी बात के लिए...’ लघुकथा: गुलजार हुसैन/ S hort story by Gulzar Hussain    उसकी आंखें लाल हो आर्इं थी...और डबडबाई आंखों में कई सवाल तैर रहे थे।  क्या वह रोते समय दुनिया की सबसे अधिक भावुक और कमजोर स्त्री हो जाती थी? लेकिन आज तो वह कमजोर हरगिज नहीं थी, क्योंकि जो हाथ थामे सामने खड़ा था वह हमेशा के लिए उससे दूर हो जाने वाला था ...और अलग हो जाने का यह फैसला क्या उसी ने नहीं किया था? Drawing by Gulzar Hussain ‘एक बार फिर से सोचो प्लीज...बदल दो यह फैसला ...क्या मैं तुम्हारे बगैर जी सकूंगा?’ ‘हां, जीना तो तुम्हें पड़ेगा ही...तड़प-तड़प के और घुट-घुट के...कोई इतना बड़ा छल करके चैन से कैसे रह पाएगा भला...’ ‘मैंने कोई छल नहीं किया...बस तुम्हें ऐसा लगता है...और क्या हमारे बचपन का प्यार इस तरह से टूट जाएगा ...एक छोटी सी बात के लिए...’ ‘तुम इसे छोटी बात कहोगे तो मैं मान लूंगी। मैं मान लूंगी कि मेरी अनुपस्थिति में तुम रात भर उसके कमरे में थे। ’ ‘लेकिन वह तुम्हारी

जिस मंदिर- मस्जिद की राजनीति ने सैकड़ों देशवासियों का खून पीया, फिर उसी के सहारे BJP क्‍यों है?

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भाजपा जिस तरह से नोटबंदी और जीएसटी के फैसले को चुनावी मुद्दा बनाने से कतरा रही है और सारी आक्रामकता मंदिर- मस्जिद की राजनीति में झोंक रही है, उससे यह लगता है कि भाजपा के फैसले जनता के बीच पूरी तरह असफल रहे हैं।  BY  Gulzar Hussain भारत में शायद ही ऐसा कोई व्‍यक्ति होगा, जो यह कहे कि मंदिर- मस्जिद की राजनीति (Mandir Masjid politics) ने सैकड़ों देशवासियों की जानें नहीं ली हैं। दरअसल, 90 के दशक में भाजपा ने जो मंदिर- मस्जिद की राजनीति शुरू की उससे न केवल देशवासियों की जानें गईं, बल्कि लोगों के बीच नफरत की अदृश्‍य दीवार भी खड़ी कर दी गई, जिसके कारण लोगों में एक नई किस्‍म की सांप्रदायिक दहशत पनपने लगी। (Symbolic Photo) Photo by  Dmitry Ratushny  on  Unsplash सवाल पूछा जाए, तो खुद आरएसएस और भाजपा के नेता भी इससे इनकार नहीं कर पाएंगे कि उनकी इस सबसे हिट राजनीतिक बिसात ने देशवासियों के सामने जीने का संकट खड़ा कर दिया था। 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की घटना ने न केवल भारत में, बल्कि कई पड़ोसी देशों में भी सांप्रदायिकता के बीज बो दिए। खैर, फिलहाल मेरे चिंतन का विषय बाबरी मस्जि

OH MUMBAI: फुटपाथ के फरिश्तों की कठिन राहें

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मुंबई ( Mumbai ) की आलीशान इमारतों और चमकती सड़कों के पीछे मजदूरों की कड़ी मेहनत होती है, लेकिन उन्‍हें इतनी पगार नहीं मिलती कि वे घर ले सकें। आखिरकार उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ता है। मुंबई की सड़कों पर देर रात राइस प्लेट खाकर मजदूरों को आप वहीं कुछ बिछाकर सोते हुए देख सकते हैं। थके हारे मजदूर फुटपाथ पर सोकर कुछ पैसा बचा लेते हैं, जिससे वे अपने गांव में रहने वाले बीवी-बच्चों का पेट पालते हैं।  BY  GULZAR HUSSAIN देश-दुनिया के लोग जितना मुंबई की चमक-दमक भरी जिंदगी के बारे में जानते हैं, उतना मुंबई के फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के बारे में नहीं जानते हैं। यह सच ( Reality)  है कि इस महानगर के फुटपाथों की गोद से निकलकर कई लोग चमकते सितारे बन गए और कई लोग वक्त के अंधेरे में खो गए, लेकिन इसके बावजूद सभी को फुटपाथ ने एक तरह मौका दिया। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि यहां के फुटपाथों ने उन लोगों को आसरा दिया, जिन्होंने मुंबई को अपने हाथों से संवारा है। Photo by Gulzar Hussain बेघर लोगों का ठिकाना  दूर-दराज से मुंबई महानगर काम करने के लिए आने वाले गरीब लोगों को बहुत आसा

2 Years of Demonetisation : नोटबंदी से इस पत्रकार की माँ ने गंवाई थी जान

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By Gulzar Hussain ''... वह बीमार थी और अस्पताल आना-जाना लगा था। हमने उस दौरान नोटबंदी की त्रासदी झेली और दूसरों के भीषण दुख देखे। हम एक-एक पैसे के लिए मोहताज थे। हम अपने पैसे को पाने के लिए तड़प रहे थे। मैं इसे न कभी भूलूंगी न ही इस संकट के लिए माफ करूंगी।'' दो साल पहले आज ही के दिन (8 नवंबर, 2016 को) जो कुछ हुआ वह भारतवासी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उस  शाम को कोई लाख चाहने पर भी नहीं भुला सकता। उस शाम 8 बजे नोटबंदी की घोषणा हुई और देश भर में अफरा-तफरी का माहौल हो गया। नोटबंदी के कारण देश की ज्‍यादातर जरूरतमंंद जनता काे एटीएम की लंबी- लंबी लाइन में लगना पड़ा और लगभग 150 से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। इनमें एक महिला पत्रकार भी थी जिन्‍हें अपनी माँ  की मौत का दुख झेलना पड़ा। Photo: Gulzar Hussain हां, नोटबंदी से वरिष्ठ पत्रकार  रंजना बनर्जी  की माँ की मौत हो गई थी। उन्होंने  30 अगस्‍त, 2018 को ट्विटर पर यह लिखा-  " मेरी माँ की मौत 8 जनवरी 2017 को हुई। नोटबंदी ने हमारी ज़िंदगी को नरक बना दिया था। वह बीमार थी और अस्पताल आना-जाना लगा था। हमने उ

Cartoon thorn: नोटबंदी के ज़ख्‍़म

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आज 8 नवंबर को नोटबंदी के दो साल पूरे होने पर सोशल मीडिया में हर तरफ व्‍यंग्‍य, कटाक्ष्‍ा और गुस्‍से भरे ट्ववीट- पोस्‍ट देखने को मिल रहे हैं। इस मुद्दे पर मैंने भी कई कार्टून (Cartoon) बनाए थे। उनमें से कुछ पेश कर रहा हूं। - गुलजार हुसैन  (सभी कार्टून: गुलजार हुसैन)

MUMBAI देखिए मेरी नज़र से...

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All photos: Gulzar Hussain MUMBAI (मुंबई) का हर कोना अपने आप में एक मुकम्‍मल कहानी है, इसलिए यहां के किसी कोने की तस्‍वीर पर अलग से कुछ कहने की जरूरत नहीं है। अक्‍सर मुंबई में भटकते हुए जो तस्‍वीरें मैंने खींची हैं, उनमें से दस खास आपके सामने पेश है।  - गुलजार हुसैन काला घोड़ा के पास/ photo: Gulzar Hussain दादर में/ photo: Gulzar Hussain सीएसएमटी के पास/ photo: Gulzar Hussain आजाद मैदान में/ photo: Gulzar Hussain गेटवे ऑफ इंडिया के पास/ photo: Gulzar Hussain फोर्ट में/ photo: Gulzar Hussain कुर्ला/ photo: Gulzar Hussain मरीन ड्राइव के पास/ photo: Gulzar Hussain कुर्ला की एक सड़क/ photo: Gulzar Hussain कुर्ला स्‍टेशन के पास/ photo: Gulzar Hussain