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उस दिन बादल ऐसा फटा कि...

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July 26, 2005, Mumbai/ सोशल मीडिया से साभाार कोई जरूरी नहीं कि जो तैरना जानते हैं वे नहीं डूबेंगे। मैं तैरना नहीं जानता था फिर भी बच गया। लोगों का कहना है कि जो तैरना जानते थे वे भी डूबे ….हां वह भयावह दिन था 26 जुलाई, 2005 ( July 26, 2005, Mumbai)  का    ...मुंबई में वह कयामत का दिन था,जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता ...उस दिन मुंबई की भयानक बाढ़ में मैं भी फंसा था …गले तक पानी में कभी आगे-कभी पीछे  ...रात भर पानी में इधर -उधर जान बचाने के लिए फिर रहा था ...बसों, कारों और डूबी हुई इमारतों के आसपास ….हर चौराहे पर फूली हुई लाशों के बीच से गुजरता मैं हर पल मौत से लड़ रहा था …मैं जीना चाहता था, शायद इसलिए जीवित रहा …मेरा यह संस्मरण सितंबर, 2005 में 'वर्तमान साहित्य' में प्रकाशित हुआ था। By  Gulzar  Hussain शाम को चार बजे जब मैं वसुंधरा कार्यालय से बाहर आया, तो देखा कि सड़क पर घुटनों से ऊपर पानी बह रहा है। इक्का-दुक्‍का वाहनों की रफ्तार चींटियों सरीखी है। हर तरफ ऑफिस से लौट रहे लोगों की भीड़ है। बारिश लगातार जारी है और छतरियां ताने रहने के बावजूद सभी गीले हो चुके हैं। लड़किय