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Showing posts from April 13, 2025

रेगिस्तान में संकटों के बीच फंसे थे गुर्जिएफ

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AI Image गोबी रेगिस्तान पार करते समय किया रेतीली आंधियों का सामना जंगली ऊंट के काटने से हुई साथी की मौत टारेंट्युला के डंक के बाद काटा अपने साथी के पैर का मांस बतख के शिकार के चक्कर में दोस्त ने दागी पैर पर गोली पिता ने सांप के साथ खेलने को किया मजबूर -गुलजार हुसैन   प्रसिद्ध लेखक-विचारक जी. आई. गुर्जिएफ (George Ivanovich Gurdjieff) ने विलक्षण मनुष्यों के संग बिताए बेहद रोचक पलों, रहस्यमयी और ज्ञानवर्धक अनुभवों से अपनी जिंदगी संवारी थी। अपनी चर्चित पुस्तक मिटिंग्‍स विद रिमार्केबल मेन (Meetings with Remarkable Men) में उन्होंने एक से बढ़कर एक रोमांचक पलों को याद किया है। खौफनाक गोबी रेगिस्तान में जाना किसी भी मनुष्य के लिए आसान नहीं था, तब 1898 में गुर्जिएफ अपने ग्रुप के साथ वहां पहुंचे। इस बेहद खतरनाक और मुसीबतों से भरी यात्रा ने उनके जीवन को झकझोर कर रख दिया था। इनका ग्रुप ताशकंद से होते हुए शरक्शां नदी के किनारे से आगे बढ़ा था। गुर्जिएफ ने दिक्कतों का सामना करते हुए बहुत सारे दुर्गम पहाड़ी दर्रों को पार किया, तब जाकर वे गोबी रेगिस्तान के पास एक गांव में पहुंचे। गांव में उन्ह...

बाबासाहेब आंबेडकर की बताई राहों पर

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मुंबई में बाबासाहेब के विचार वाले पोस्टर।  File photo/ Gulzar Hussain गुलज़ार हुसैन बाबासाहेब की जयंती पर विशेष मैं जब मुंबई आया था, तो उस समय हर कदम पर एक नया संघर्ष मेरे सामने आ जाता था। आज भी संघर्ष ही अपना साथी है, लेकिन मुंबई में रहते हुए कठिन पलों के बीच आत्मसम्मान के साथ जीने की राह मुझे बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों ने दिखाई। मुंबई में पैदल चलते समय यह सोचकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा होता रहा कि यही वह धरती है, जहां बाबासाहेब ने संघर्ष करते हुए मानवता का संदेश दिया।  मुंबई बाबासाहेब की कर्मभूमि रही और यहां मैंने भी पसीना बहाया है। यहां रहते हुए लिखता रहा ...चलता रहा ...जीता रहा। उनकी किताबें मुझमें उत्साह भरती रहीं ...कहती रहीं- कोई इंसान जाति-धर्म के आधार पर न किसी से रत्ती भर छोटा है न बड़ा। मैं उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर हर साल दादर के चैत्यभूमि जाता रहा हूं। वहां शिवाजी पार्क में लगने वाले पुस्तक मेले की बात ही कुछ और होती है। कई आंबेडकरवादी दोस्तो से मिलना तो होता ही है, साथ ही कई लेखकों और एक्टिविस्टों को सुनने को भी मिलता है। नई किताबें भी खरीदने का यह बेहतरीन मौका...

घास : लघुकथा

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AI IMAGE शमीमा हुसैन बारिश खूब तेज है। मई का आखरी दिन है। आम, लीची पककर बाजार में आ गए हैं।   फरमान साहब की दो गाये हैं। दोनों बच्चावाली हैं। बेचारा बूढ़ा फरमान आसमान की तरफ देख रहा है कि कब बारिश रुके। वह बार-बार सर को खुजा रहा है। गाय के नाद में देखता और फिर कुट्टी को देखता है। उसकी  बेचैनी खटिया पर बैठी बुढ़िया देख रही थी। उसे रहा नहीं गया। गुस्से से भरकर बोली, ''आराम से बैठ ...बारिश है तूफानी ...जो घास-भूसा है उहे रहने दे।'' बूढ़ा तुनककर बोला, ''हफीज के माई, तुमको कुछ दिखाई नहीं देता है। दोनों अल्माती गाय है। इसे घास मिलना जरूरी है। बहू भी गुस्सा जतई, हम ई बारिश में ही घास काटे चल जबई।'' दो गाये हैं। दूध बेच कर जो भी पैसा होता है उसकी बहू के हाथ में जाता है।  मेरी शादी के पांच साल हो गए। आज तक चाची को कुछ खरीदते हुए नहीं देखा? जबकि मुहल्ले में रोज बेचने वाला आता है। लाई, मिठाई वाला, आम, अंगूर, केला, सभी फल वाला आता है। पर उनके मुंह पर एक पीड़ा दिखती है। पर मैं क्या करूं पड़ोस की बहू हूं। फरमान साहब जूट मील में नौकरी करते थे। अब रिटायर हैं। पेंशन भी बे...