लघुकथा : दूसरी डिलीवरी
लघुकथा: शमीमा हुसैन
आज शनिवार का दिन है। आज के दिन शहीदा बड़ी ख़ुशी से छोला-पूरी बनाती थी। पर आज घर में चाय, ब्रेड का नाश्ता बना है। शहीदा जब से शादी से होकर आई है, तब से पूरे घर की देखभाल करती है। वह सत्रह साल की थी जब उसकी शादी हो गई थी। तब उसे काम करने का मन नहीं भी होता, तब उसे करना पड़ता। पूरे घर की जिम्मेदारी शहीदा को सास ने यह कहकर सौंप दिया कि बहू यह घर तुम्हारा है इसे अब संभालो। यह बात उसे अच्छी लगी पर, अब समझ में आया कि कंधे पर बोझ आ पड़ा है। शहीदा हिम्मत करके जिम्मेदरी उठाने लगी। दो साल बाद सकीना का जन्म हुआ था। वह उसकी पहली डिलीवरी थी। तब वह मां के यहां चली गई थी, लेकिन अभी दूसरी है। वह अस्पताल में पड़ी है। चार दिन बाद नाम कटेगा।
शहीदा को अस्पताल से घर आए एक सप्ताह हो गया था।
एक रोज शहीदा की सास ने सुना दिया, "मैंने तो चार दिन में ही घर का काम चालू कर दिया था। तुमने ने तो एक
सप्ताह आराम भी कर लिया। अब घर संभालो।"
शहीदा सब समझ गई। लेकिन उसे कमजोरी भी बहुत थी। दर्द भी बहुत था। फिर भी वह जान पर खेलकर काम करने लगी।
एक दिन वह परात में आटा निकाल रही थी और अपनी पहली डिलीवरी की बातें याद कर रही थी। वह रोये जा रही थी और उसे सब बातें याद आ रही थी। अब उसकी मां भी इस दुनिया में नहीं है। यह सोचकर वह और रोये जा रही थी। मां ऐसे समय में बहुत सेवा करती थी। खाने-पीने का पूरा ख्याल रखती थी। दो देगची मां ने मसाला बनाया था, लेकिन उसकी सास ने तो एक टाइम भी हल्दी का पानी भी गर्म करके नहीं दिया। मसाला बनाना तो दूर की बात है।
सास ने कहा, ''मसाले पुराने ज़माने में बनता था। अब नहीं।''
शहीदा ने सोचा मेरे लिए इसके कानून बदल जाते हैं। ये मां-बेटी दोनों ही एक नंबर के हलकट हैं।
शहीदा को मां की याद आज बेतरह आ रही है। उसे लगा कि मां अभी आएगी, और कहेगी, ''बेटी यह काम तुम न करना तू अल्माती है ...शरीर अलग जाएगा ...बच्चादानी सरक जाएगी ...ओ मां।
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