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Showing posts from June 2, 2019

वह तो खुशबू है...फ़ीरोज़ अशरफ़ का यूं चले जाना

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Firoz Ashraf  /Image: उनकी पुस्तक कवर से  By Gulzar Hussain वह तो खुशबू है, हवाओं में बिखर जाएगा... हां, ...खुशबू को तो बिखरना ही है...कौन रोक सकता है इसे ...लेकिन कौन जानता था कि परवीन शाकिर के बारे में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'पाकिस्तान: समाज और संस्कृति' में 'खुशबू बिखर गई' शीर्षक से स्मृति-लेख लिखने वाले फ़ीरोज़ अशरफ़ भी परवीन की तरह ही सड़क दुर्घटना का शिकार होकर हमसे दूर हो जाएंगे।  हां। कल (7 जून) एक वाहन की चपेट में आकर फ़ीरोज़ साहब चल बसे। मुंबई सहित देश की पत्रकारिता जगत को इन्होंने अपनी लेखनी से बहुत समृद्ध किया। मुंबई से निकलने वाले अखबार 'नभाटा' से लेकर 'हमारा महानगर' तक में छपने वाले इनके कॉलम की खूब चर्चा हुई। 'हमारा महानगर' में तो वे हाल तक लिख रहे थे।  मेरे लिए खुशकिस्मती की बात थी कि जिन दिनों मुझे 'हमारा महानगर' में कॉलम 'प्रतिध्वनि' लिखने का मौका मिला था, तब फ़ीरोज़ साहब भी उसमें कॉलम लिख रहे थे। इससे उनको लगातार पढ़ने का मौका मिलता रहा और उनको जानने-समझने का भी मौका मिलता रहा।  वे जितना अधिक स

जब वह कलम चलाता था, तो जार की सत्ता कांप जाती थी

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मैक्सिम गोर्की बेहद खतरनाक समय में मैक्सिम गोर्की ने कलम की ताकत से एक मिसाल कायम की। By Gulzar Hussain हां, उस कलम वाले का नाम मैक्सिम गोर्की था, जो रूस के सबसे संकटग्रस्त दिनों में अपनी कलम से न्याय की आवाज़ बुलंद कर रहा था। वह एक गरीब संदूक बनाने वाले का बेटा था। तमाम तरह के कष्टों में बचपन गुजारने वाले गोर्की को मजदूरों की दुर्दशा बेहद खटकती थी। वह जार की सत्ता तले रौंदी जा रही जनता को देखकर बेचैन हो उठा था...इसलिए वह सामाजिक न्याय के लिए लगातार कलम चला रहा था। उसे कई बार सलाखों के पीछे डाला गया, लेकिन उसके बाद उसकी कलम की  धार और तेज हो गई। जब1906 में उसने अपने उपन्यास "मां" में मिल मजदूर युवक पावेल की गाथा लिखी, तो फासिस्ट सत्ताधारी कांप गए। पावेल की मां उस दौर के हर क्रांतिकारी की आदर्श बन गईं। जुल्म करने वाले सत्ताधीशों की नींव कमजोर पड़ने लगी। बेहद खतरनाक समय में मैक्सिम गोर्की ने कलम की ताकत से एक मिसाल कायम की। मानववाद के सजीव प्रतिमान गोर्की ने यह उदाहरण पेश किया कि अत्याचारी चाहे कितना भी बलवान क्यों न हो सत्य के प्रहार से वह झुक ही जाता