उनका अभिनय भुलाया नहीं जा सकता
पश्चिम बंगाल में गुजरे बचपन ने मुझे बांग्ला फिल्मों और बांग्ला साहित्य का बेहतरीन तोहफा दिया है। इनमें से एक तोहफा सौमित्र चटर्जी की फिल्में रही हैं। रविवार को वे हम सबसे सदा के लिए दूर हो गए, लेकिन उनका रुला देने वाला अभिनय मैं कभी नहीं भूल सकता। अपुर संसार में जब वे अपने नन्हे बेटे से पहली बार मिलते हैं, तो उनका बेटा उन्हें नहीं पहचानता। ...उस गम में डूबे पिता का अभिनय कितनी गहराई लिए हुए था, उसे मैं शब्दों में नहीं बयान कर सकता। जब मैं छोटा था, तब न्यू जलपाईगुड़ी में अपने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर उनकी कई फिल्में देखने का मौका मिला था। इनमें अपुर संसार सहित कई उल्लेखनीय फिल्में शामिल हैं। सत्यजीत रे की नजरों में वे बेहतरीन अभिनेता थे, लेकिन मुझे उनके गहरे अभिनय के बारे में काकी मां से पता चला। काकी मां मेरे पड़ोस में रहती थीं और सौमित्र साहब की बड़ी फैन थी। एक बार टीवी पर उनकी एक क्लासिक फिल्म आ रही थी, तो काकी मां ने मुझे बुला लिया- "गुलज़ार, तारातारी एसो...देखो एई फिल्म टा देखो..." "आमी देखबो काकी मां...." मैं यह कहते हुए उनके पास चला गया। फिर उन्होंने सौमित्र साहब