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गरीबों के संघर्ष पर भारी राजनीतिक जादूगरी

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                                                                                                             -   गुलज़ार हुसैन पिछले दिनों गरीबों के भोजन और रहन-सहन को लेकर राजनीतिक गलियारों में जो मजाक उड़ाने का दौर चला था उसका लक्ष्य -सूत्र आप कहां पर देख पा रहे हैं? कोई जिम्मेदार नेता एक प्लेट खाने के दाम को लेकर हास्यास्पद टिप्पणियां करता है तो उसके निहितार्थ क्या हो सकते हैं। इस विषय के उद्देश्यों को भी गहराई से समझना होगा। आप देखिए कि गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों के लिए जो सरकारी कल्याणकारी योजनाएं लागू हुईं हैं और जो होने वाली हैं उसकी स्थिति क्या है। सरकारी स्कूलों और आंगनवाड़ी के माध्यम से गरीब बच्चों और महिलाओं को क्या सुविधाएं मुहैया कराई जा रहीं हैं? इसके दो पहलूओं पर ध्यान दें,पहला तो ये योजनाएं ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हैं और दूसरा कि इन योजनाओं में में जबर्दस्त लापरवाही और भ्रष्टाचार है। इसका बड़ा उदाहरण हाल ही में बिहार के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मिल खाने से हुई छात्रों की मौत है देश की छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियां अगले वर्ष