नोटबंदी के नाम पर वोट क्यों नहीं मांग रहे मोदी?
viewpoint: Gulzar Hussain
लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एड़ी चोटी का जोड़ लगाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद वे नोटबंदी (demonetisation) और जीएसटी के नाम पर वोट नहीं मांग रहे हैं। मोदी ही नहीं, बल्कि भाजपा का हर छोट-बड़ा नेता नोटबंदी जैसे मुद्दे पर एक शब्द नहीं बोल पा रहा है। भाजपा की चुनावी सभाओं में कहीं से नोटबंदी को लेकर कहीं कोई आवाज नहीं उठ रही है, लेकिन दूसरी ओर लंबी चुप्पी के बाद मोदी ने एक इंटरव्यू में यह साफ किया है कि नोटबंदी राष्ट्रहित में था, राजनीतिक हित में नहीं था। इसे मान भी लिया जाए फिर भी जनता यह तो पूछेगी ही कि आखिर नोटबंदी से क्या हुआ? यदि नोटबंदी राष्ट्रहित में था, तो इससे देश का क्या भला हुआ? कितना ब्लैक मनी आया? कितने मुनाफाखोरों का भंडाफोड़ हुआ? तो इतना तो तय है कि मोदी इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाते घबरा रहे हैं, क्योंकि उनके मन में भी यह है कि जनता इसको लेकर भड़क सकती है।
यह बड़ा ही अजीब लगता है कि जिस नोटबंदी को भाजपाई नेता-कार्यकर्ता एक सुर से मोदी का सबसे महात्वाकांक्षी कदम मानते थे, अब वे ही चुनाव प्रचार में उसके बारे में एक शब्द नहीं बोल पा रहे हैं। नोटबंदी यदि मोदी का मास्टर स्ट्रोक था तो आखिर वे इसको लेकर चुनावी सभा में लोगों से क्यों नहीं कहते कि बहनो भाइयों मैंने नोटबंदी की है, मुझे वोट दीजिए। ऐसा भी नहीं है कि मोदी कोई उल्लेखनीय कार्य करें और उसे चुनाव में न भुनाएं। क्योंकि उन पर तो अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वे मामूली मुद्दों को भी चुनावी भाषणों में भुना लेते हैं। भाजपा के नेताओं पर तो यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वे सर्जिकल स्ट्राइक और सैन्य कार्रवाई के मुद्दों को भी चुनावी पार्टी का मुद्दा बना दे रहे हैं। हाल ही में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी एक चुनावी प्रचार सभा के दौरान सैन्य कार्रवाई को लेकर मोदी की सेना कह कर विवाद को हवा दे ही दी है।
नोटबंदी के दौरान मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक लगभग 150 लोगों की जान चली गई। वहीं हजारों लघु- मध्यम उद्योग बर्बाद हो गए और काफी संख्या में लोग बेरोजगार भी हुए। इतना नुकसान होने के बाद भी इससे जो काला धन लाने का वादा था वह भी पूरा नहीं हुआ। आम लोग दिन- रात बैंकों के सामने लंबी- लंबी लाइनों में लगे रहे, लेकिन इन सबका कोई नतीजा नहीं निकला।
बाद में रिजर्व बैंक ने भी प्रतिबंधित 99 फीसदी नोट लौट आने की बात कहकर नोटबंदी के सुपर फ्लॉप होने पर मुहर लगा दी थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद भाजपा के तेवर इसको लेकर कम नहीं हुए। कहीं भी कोई भी भाजपा नेता तनिक भी अफसोस जताता नहीं देखा गया। भाजपा नेताओं में इतना अधिक रूखापन देखने के बाद जनता ने भी सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ अपने विचार प्रकट करने शुरू कर दिए।
दरअसल, मोदी सहित भाजपा नेताओं को यह आभास तो है ही कि आम जनता में नोटबंदी को लेकर भीषण आक्रोश है, लेकिन सार्वजनिक रूप से वे माफी तो मांग नहीं सकते। एक कहावत बन गई है कि जो माफी मांग ले वो मोदी क्या और जो गलत नीति का विरोध कर दे वो भक्त क्या। इसलिए मोदी ग्रुप ने इसका काट यह निकाला कि चुनावी सभा में नोटबंदी का एक शब्द में भी उल्लेख नहीं किया जाए, ताकि जनता के गुस्सा का सामना करने की नौबत ही न आए। नहीं तो इतना तो तय ही है कि नोटबंदी से यदि देश का कोई एक फायदा भी हुआ होता, तो मोदी उसे लेकर चुनावी सभा में चीख रहे होते। क्योंकि वे नेकी कर दरिया में डाल देने वाले नेता तो हैं, नहीं यह तो सभी जानते हैं।
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