तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती
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Photo by Abhijit Pattnaik on Unsplash |
-गुलज़ार हुसैन
घर में बंदूक रखने से कभी सोचा कि क्या बिगड़ा?
तुम्हारे गुलमोहर पर अब कभी कोयल नहीं आती
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कलम उठाई है तो इस कलम का मान तुम रखना
भले कट जाए गरदन, इंसाफ की जुबान तुम रखना
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आंखें हैं, दिल है और लब भी साथ है मेरे
तो कैसे चुप रहें, इंसान पर जब जुल्म होता हो
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वे हमारी पीठ पर कोड़े चला के हार गए
किसी को मार के कुछ भी नहीं जीता जाता
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वंचित जनों की पीठ पर चाबुक चलाते हो
अरे कैसे फिर भारत माता की जय गाते हो
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तुम्हारे खेत, तुम्हारे बाग-बगीचे, तुम्हारे ही पोखर
आओ, दलित-पसमांदा की नजरों से ये दुनिया देखो
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वतन के लिए जिसने अपनी जान तक दे दी
उसके लिए तूने मसान का एक कोना नहीं दिया
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सफर अधूरा, प्यार अधूरा, हर मुलाकात अधूरी ही रही
मगर वतन को और बेहतर बनाने का ख्वाब अधूरा न रहे
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फुटपाथ पर चलो तो कदम आहिस्ता से रखना
सियाह रात में थक कर यहां मजदूर सोते हैं
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उसके होंठों पे थी मुस्कान और आंखों में दर्द था
दिल ने कहा, गर प्यार है तो आंखों को चूम लो
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छह शब्दों में कहो या सुनाओ सात शब्दों में
शर्त है कि वह अखलाक-रोहित की कहानी हो
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तुमने मटन और बीफ की सियासत के नाम पर
किसी बेटी के सर से बाप का साया हटाया है
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कत्ल इंसान का हो और उसे सही ठहराया जाए
अपने वतन को इसी साजिश से बचाना है हमें
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लोगों को लड़ाने में, यूं खून बहाने में
माहिर है तेरी पार्टी बस 'बीफ' बनाने में
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तुम्हीं हिटलर हो, मुसोलिनी हो, जियाउल हक भी तुम्हीं हो
तुम्हारे हाथ भी खून से रंगे हैं, कभी फुरसत में देखना
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तुमने नरसंहार कराया और माफी तक नहीं मांगी
बड़ी चालाकी से तुमने इतना बड़ा गुनाह छुपाया
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'दो साल' में गर दो कदम भी तुम चले होते
तो अखलाक न मरता, न रोहित ही बिछड़ता
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मजदूर रो रहे हैं और किसान दुखी हैं
दो साल में दो काम किए हैं तुमने
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वे दिलवाले हैं, जो गरीबों को पानी पिलाते हैं
मगर छोटा है उनका मन जो बरतन अलग रखते हैं
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उन्होंने इसको नीचा, उसको छोटा कह के दुत्कारा
न जाने क्यों वे डरते हैं इंसान को इंसान कहने में
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हम तो बोलते थे, बोलते हैं और बोलेंगे
तुम्हारी गोलियों से हम नहीं मरने वाले
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वतन के नौजवां पर इतना शक करते क्यों हो
रोटी और हक के सवालों यूं से डरते क्यों हो?
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पानी के लिए खोदो कुएं, तालाब तलाशो
कि अब मोम के पुतले की आंखों में नहीं पानी
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वो वतन का था वतन का है वतन का ही रहेगा
तुम गर हमवतन हो तो लाठी से डराते क्यों हो?
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(फेसबुक पर पोस्ट किए गए मेरे चंद शेर : गुलज़ार हुसैन )
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