प्रेम जहां है ‘सैराट’ वहां है

By Gulzar Hussain
नागराज मंजुले की मराठी फिल्म ‘सैराट’ (Sairat) ने सफलता के झंडे तो गाड़े ही है, साथ ही इस फिल्म ने हमारे समाज में तेजी से फैलती जा रही आॅनर किलिंग जैसी बड़ी समस्या को भी सामने रखा है। हाल ही में नवी मुंबई में प्रेम संबंध को लेकर एक दलित लड़के की हत्या कर दी गई। इस हत्या से मुंबई सहित महाराष्ट्र भर के लोग सन्न रह गए  हैं। इस हत्या के बाद फिर से लोगों में आॅनर किलिंग को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी हैं। इस हत्या ने लोगों में यह बात गहरे से बैठा दी है कि ‘सैराट’ हमारे  समाज की कड़वी सच्चाई है और जहां कहीं भी प्रेम है वहीं पर ‘सैराट’ (ऑनर किलिंग) भी है। प्रेम की अनगिनत गलियों में ‘सैराट’ के कांटे उगे हुए हैं। इससे सतर्क रहने की जरूरत है।दरअसल सैराट का मतलब तो दीवाना हो जाना होता है, लेकिन हम यहां सैराट का मतलब आॅनर किलिंग मान कर चल रहे हैं।
(Sairat फिल्म का एक दृश्य/ File Photo) 

पर्श्या की तरह मारने की धमकी 

नवी मुंबई में दलित लड़के की हत्या किए जाने के बाद कई तरह की बातें सामने आई हैं। आरोप है कि दलित लड़के को  ‘सैराट’ के पर्श्या की तरह ही मार डालने की  धमकी दी गई थी। लड़के और उसके परिजनों को कहा गया था कि यदि लड़का लड़की एक दूसरे से दूर नहीं हुए तो दोनों का हाल ‘सैराट’ के पर्श्या और आर्ची की तरह कर दी जाएगी। इस तरह की धमकियों को लेकर समाज में एक तरह का भय फैला है। एक तरफ तो लोग हाल ही में आई ‘सैराट’ फिल्म को नहीं भूले हैं और उस पर  इस हत्या ने दहशत सी मचा दी है। युवक और युवतियों में इसको लेकर सबसे अधिक भय फैला है।

नई पीढ़ी पर मंडराता खतरा 

आॅनर किलिंग का खतरा नई पीढ़ी पर ही मंडराता रहता है, इसलिए यह हमारे देश की बड़ी समस्या बन कर उभरा है। प्रतिष्ठा या इज्जत के नाम पर की जाने वाली हत्या  को लेकर सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि एक ऐसा अपराध है, जिसके बारे में कोई पूर्वानुमान या आभास होने की बात नहीं होती। किसी लड़की की हमेशा  रक्षा करने वाला पिता ही कभी भी उसका गला घोंट सकता है या किसी की बेटी के दोस्त या प्रेमी का गला रेत सकता है।  ‘सैराट’ फिल्म में भी तो प्रेमी जोड़े की हत्या  तब होती है, जब युवती अपने माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों पर पूरा विश्वास करने लगती है। इस तरह यह कहा जा सकता है कि कोई युवक कभी भी आॅनर किलिंग  का शिकार हो सकता है।

जातिवाद का दंश 

जातिवाद ने हमेशा इंसनियत और प्रेम के राह में रोड़े अटकाए हैं। इसने एक भाई को दूसरे भाई से नफरत करना सिखाया है, लेकिन इसके बावजूद इस जातिवाद को नहीं  मिटाया जा सका। यह जातिवाद धीरे-धीरे कई अन्य अपराधों की जननी भी बनता चला गया। जातिवाद से निकले कई तरह के अपराधों में से एक आॅनर किलिंग भी है।  यह एक ऐसा अपराध है जिसके तहत किसी युवक या युवती की जान उसकी जाति पहचान कर की जाती है। जातीय घृणा और इसके आधार पर किसी को खुद से छोटा  मानकर की गई हत्या ही आॅनर किलिंग है।


अमीर घरानों का क्राइम 

आॅनर किलिंग को अमीर घराने का क्राइम माना गया है। यह अधिकतर संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों द्वारा किया जाने वाला अपराध बन चुका है। जब कोई अधिक पैसे  वाला व्यक्ति अपने बेटे या बेटी को किसी गरीब प्रेमी या प्रेमिका के साथ रहते नहीं देख सकता, तो दोनों को या उनमें से किसी एक को मार डालने की योजना बनाता है।  ठीक ऐसी ही योजना कमजोर जाति समूह के लड़के या लड़की को मारने के लिए भी बनाई जाती है। कोई जातिवादी पिता कभी भी अपनी बेटी या बेटे की शादी अपने से  किसी छोटी जाति के लड़के या लड़की से नहीं होने देना चाहता और ऐसी स्थिति में उसे मरवा देता है।


कोल्हापुर की गलियों में गुम हुई एक प्रेम कहानी  

कोल्हापुर के एक गांव में पिछले वर्ष ठीक ‘सैराट’ के अंतिम दृश्य की तरह की ही कहानी दोहराई गई। यहां बचपन के दोस्त मेघा और इंद्रजीत जब बड़े होकर एक-दूसरे  से प्यार करने लगे, तो उनके रिश्तेदारों की आंखों में खटकने लगे। दोनों ने भाग कर शादी की। लेकिन एक दिवाली पर मेघा के भाई जयदीप और गणेश उसके घर आए।  मेघा और इंद्रजीत को लगा कि सब कुछ ठीक हो गया है, लेकिन मामला तो कुछ और ही था। दोनों भाइयों ने मिलकर मेघा और इंद्रजीत का गला ठीक वैसे ही काटा जैसे  ‘सैराट’ फिल्म के अंतिम दृश्य में फिल्माया गया है।  आज भी मेघा और इंद्रजीत की प्रेम कहानी सुनकर लोगों की आंखें भर आती हैं।
(Sairat फिल्म  का एक दृश्य ) 


अहमदनगर की राह पर बिखर गया मासूम आंखों का सपना 

अहमदनगर के खर्डा गांव में एम मासूम युवक नितिन को यादकर आज भी उसकी मां रेखा आगे की आंखें भर आती हैं। वह कहती हैं कि यह घोर जातिवादी हत्या थी।  नितिन और एक अपर कास्ट लड़की पूजा गोलेकर के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी। इस प्रेम कहानीइ का अंत एक दिन ऐसे हुआ कि नितिन पेड़ पर मृत लटका पाया गया।  पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि उसके गुप्तांग पर मारा गया और जलता हुआ रॉड उसके अंग में घुसेड़ दिया गया। कहा जाता है कि इस दर्दनाक प्रेम कथा को याद  करके उस गांव के लड़के-लड़की एक दूसरे से बात करते हुए भी घबराते हैं।


अंतर्जातीय विवाह तो जरूरी है, लेकिन...

बाबासाहेब आंबेडकर ने जातिवाद को जड़ से मिटाने के लिए अंतर्जातीय विवाह को एक जरूरी कदम बताया था, लेकिन हमारे समाज में इसे अभी तक ठीक से स्वीकार  नहीं किया गया है। देश के कई हिस्सों में आॅनर किलिंग के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और जातिवाद की खाई भी चौड़ी होती जा रही है। यदि हमारे समाज में अंतर्जा तीय विवाह को स्वीकार कर लिया गया, तो मानवता की राह में रोड़ा बने जातिवाद से भी मुक्ति मिल जाएगी। गौरतलब है कि नई पीढ़ी में अंतर्जातीय विवाह को लेकर  बहुत उदार धारणाएं हैं। नई पीढ़ी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपनी जीवन शैली और समाज को बदलने को आतुर है। वे समाज को और बेहतर बनाना चाहते हैं। उनके लिए  अब प्रेम और शादी के लिए धर्म-जाति की दीवार कोई मायने नहीं रखती, लेकिन नई पीढ़ी की राह में आॅनर किलिंग अजगर की तरह मुंह बाए खड़ी है।


हरियाणा की बदनामी से सबक लें

आॅनर किलिंग तो पूरे देश की गंभीर समस्या है, लेकिन हरियाणा की धरती इसको लेकर सबसे अधिक बदनाम रही है। हरियाणा के बारे में कहा जाता है कि वहां मरना हो  तो प्यार करो। आॅनर किलिंग के मामले में हरियाणा के बदनाम होने की एक वजह यह है कि यहां खाप पंचायतों का समाज पर काफी असर है। इसके अलावा विजातीय  प्रेम या प्रेम विवाह करने वाले जोड़े को अमूमन अपने इस अपराध की कीमत जान देकर चुकानी होती है। माना जाता है कि ऐसे मामलों में पंचायतों का फैसला ही सर्वोपरि  होता है और सरकार और पुलिस भी इन पंचायती फैसलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। अब हरियाणा सहित देश के अन्य राज्यों को यह ठीक से देखने की  जरूरत है कि आखिर किस इज्जत के नाम पर हम अपने ही देश के लोगों को मार रहे हैं।


बच निकलते हैं अपराधी 

 यह कहा जाता है कि आॅनर किलिंग के मामलों में हत्यारों और अन्य दोषियों को सजा मिलने के उदाहरण बहुत कम हैं। ऐसा माना जाता है कि सजा मिलती भी है तो  बेहद मामूली सी। इसकी मुख्य वजह तो यह है कि ऐसे आॅनर किलिंग के मामलों में पुलिस को अक्सर दोषियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलता है। आरोप तो यह भी  लगते रहे हैं कि ज्यादातर में अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए नहीं हो पाती है कि आॅनर किलिंग करने वाले लोगों की सत्ता पर मजबूत पकड़ होती है। कई हत्यारे  रसूखदार होते हैं और उनकी राजनीतिक धाक भी होती है। ऐसे में हत्यारे बच जाते हैं।


कैसे रुके झूठी इज्जत के नाम पर मासूमों की हत्याएं?

अब सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर झूठी इज्जत के नाम पर होने वाली मासूम युवाओं की हत्याओं पर अंकुश कैसे लगाया जाए? माना जाता है कि आॅनर  किलिंग इतना अप्रत्याशित ढंग से होने वाला अपराध है कि इसको लेकर न तो कोई एक राय बन पाती है और न ही इसे रोकने का कोई ठोस उपाय सूझता है। कोई इसको  रोकने के लिए सख्त कानून बनाने और उस पर अमल करने की बात कहता है। लेकिन सबसे बड़ी कमजोरी तो सबूतों को लेकर सामने आती है। कमजोर सबूतों के  आधार पर कैसे कोई सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है? ऐसे मामलों में गवाहों को भी नहीं बख्शा जाता है, इसलिए इतना भय होता है कि कोई डर से सामने नहीं आ  पाता है। जो भी हो, इन हत्याओं का सिलसिला शीघ्र रोकने की जरूरत तो है ही।
('दबंग दुनिया' में प्रकाशित ) 

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