जब मनोज कुमार का दौर था

जब मैं छोटा था, तब घर में एक ब्लैक एंड वाइट पोर्टेबल टीवी भी था। सच कहूं, उस समय मेरे लिए उस टीवी के दौर के साथ साथ मनोज कुमार का भी दौर था। मनोज कुमार की कोई फिल्म टीवी पर आने को होती, तो हम सब भाई- बहन बेहद उत्साहित हो जाते थे। उनकी फिल्मों का इंतजार रहता था।


'शहीद', 'उपकार', 'हरियाली और रास्ता' और न जाने उनकी कितनी फिल्में हम छोटे ब्लैक एंड वाइट टीवी पर देख चुके थे... एक बार टीवी पर उनकी फिल्म 'उपकार' आने वाली थी। मेरे पड़ोस के गांव के मेरे भैया के एक दोस्त इस्लाम उस दिन घर आए थे। उन्होंने मुझे पास बुलाया और कहा, "सुनो, उपकार फिल्म जरूर देखना। इसे मत छोड़ना।" मुझे वह फिल्म देखनी तो थी ही, लेकिन उनकी बात सुनने के बाद तो मैंने नजरें गड़ाकर पूरी फिल्म देखी।


दरअसल, देशभक्ति को अभिनय के रूप में प्रस्तुत करने का उनका अंदाज सबसे निराला था ...सबसे प्यारा था... 'शहीद' फिल्म जब देखने का मौका आया, तो उससे बेहद प्रभावित हुआ। मनोज कुमार के बोलने का अंदाज और उनके हाव भाव इस तरह से थे कि लगता कि भगत सिंह एकदम ऐसे ही रहे होंगे। उस फिल्म का एक गाना तो मेरी जुबान से चिपक गया था- "ऐ वतन, ऐ वतन हमको तेरी कसम, तेरी राहों में जां तक लुटा जाएंगे..."


भगत सिंह की भूमिका रुपहले पर्दे पर कई अभिनेताओं ने की है, लेकिन जिस शिद्दत से मनोज कुमार ने इस किरदार को जिया वैसा किसी दूसरे से नहीं हो पाया। प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव ने भी हंस के एक संपादकीय में भगत सिंह के किरदार को निभाने वाले अभिनेताओं को याद करते हुए लिखा था कि शहीद फिल्म में मनोज कुमार हूबहू भगत सिंह दिखते थे और उन्होंने इस किरदार के लिए काफी मेहनत की थी। हां, क्रांति फिल्म दिखाने बाबा मुझे सिनेमा हॉल ले गए थे। तब मैं बहुत छोटा था इसकी बेहद धुंधली सी याद है मुझे।


पिछले दिनों उनके देहांत की खबर से एकदम से मैं चौंक उठा...मन दुखी हुआ। श्रद्धांजलि ...नमन प्यारे अभिनेता!

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