गर्म पानी : लघुकथा
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नसीमा दिनभर गुलाम की तरह घर का काम करती रहती थी, लेकिन उसकी सास हफिया को तो यह नजर ही नहीं आता था। जब देखो तब हफिया उसे जली-कटी सुनाने लगती। हफिया अक्सर उसे यह कह कर कोसती रहती कि तुम्हारा बाप भड़वा, तुम्हारी माँ बाईजी ...तुम्हारे बाप ने यह नहीं दिया ...वह नहीं दिया ...जो दिया वह भी ख़राब दिया ...बाई जी को नहीं दिखता है।
दोनों सास बहू एक ही छत के नीचे रहती थी, लेकिन दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए बहुत नफरत भरा हुआ था। हफिया सास कम, मक्खी ज्यादा लगती थी। वह उसके हर काम में नुक्स निकाल देती थी। कभी भी वह बहू के किसी भी काम को सही नहीं कहती।
...चाय बना दी, तो उसमें चाय पत्ती कम है ...सब्जी में हल्दी की मात्रा अधिक है ...धनिया कम है, रोटी कच्ची है ...चिकेन विसैना है। शादी का दो साल हो गया है, कभी भी अच्छी बात नहीं की। रोज -रोज की किच -किच से तंग आकर नसीमा अपने मायेका चली जाती, तब भी सास हफीया गाली बकती। नसीमा भी झगड़ा करती। दोनों खूब लड़ाई करती। सास-बहू की लड़ाई से घर में माहौल गर्म रहता था।
नसीम कहती, ''क्या अरज के रखी है, जो इतना रोआब दिखाती है, रेलवे पटरी पर घर है। वह भी फूस का। इसी का घमंड है।''
इस बात पर सास हफिया बहुत गुस्सा होती और कहती, ''तुम्हारे बाप ने जमीनदार के घर में शादी क्यों नहीं की?''
सुबह का टाइम था। आठ बज रहा था। मिटटी वाले दो चूल्हे थे, उसी पर एक तरफ दाल और दूसरी तरफ चावल का अदहन चढ़ा हुआ था। तभी सास हफिया कहीं से आई और कहने लगी, ''दो चूल्हा क्यों जलाया? लकड़ी ज्यादा खर्च होता है। इसे कुछ भी मालूम नहीं है।''
चूल्हा खूब धनक रहा था। पानी खूब खौल रहा था। सास हफिया ने ढक्कन उठा कर देखा, पानी बहुत कम है। हफिया का गुस्सा और बढ़ गया। बोली, ''एक किलो चावल में इतना कम पानी पड़ेगा? इसे कुछ करना नहीं आता है।''
तभी नसीमा अदहन में और पानी रखने के लिए ढक्कन हटाने लगी। जोर से ढक्कन हटाने के कारन पतीली पलट गई पास बैठी हफिया के उपर गिर गई।
हफिया चिल्लाई, ''अरे जल गई... मैं मर गई...''
नसीमा स्तब्ध रह गई। यह कैसे हो गया। घर के लोग और पड़ोसी भी जमा हो गए। सब उठाकर उसे डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने बताया, ''गहरा जला हुआ है। जख्म बहुत है। यहां भर्ती करना पड़ेगा।''
घर वालों ने उसे भर्ती करा दिया।
नसीमा पछतावे में डूब गई। आपसी मनमुटाव और तनाव घर में बड़ी मुसीबत लाती है।
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