आत्महत्या से पहले: लघुकथा
लघुकथा: गुलजार हुसैन/ Short story by Gulzar Hussain
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Photo by Everton Vila on Unsplash |
उन दोनों ने अपनी -अपनी दो कटी उंंगलियों की ओर देखा और सहमे हुए एक दूसरे से लिपट गए...यह जख्म तीन महीने पहले का था, जब दोनों दिल्ली भाग गए थे ...
वह जहां खड़ी थी वहां से बस एक छलांग ही उसकी जान लेने के लिए काफी थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी, क्योंकि उस पुल पर वह उसका हाथ थामे खड़ा था.
...तो क्या दोनों वहां आत्महत्या करने आए थे?
वह बहुत देर चुप नहीं रह सका. उसने उसके बिखरते बालों में हाथ फिराते हुए कहा, "क्या इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है ?"
" वे 'ऑनर किलिंग' पर उतारू हैं और तुम राह ढूंढ रहे हो ...ऐसे में जान देने के अलावा क्या रास्ता बचता है? घर से भागने का परिणाम तो पहले ही भुगत चुके हैं हम."वह नम आंंखों से उसकी तरफ देखते हुए बोली, "नहीं ...इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं...हम दोनों दो अलग जाति के हैं और यही दुनिया की नजर में हमारा सबसे बड़ा अपराध है. हम शादी करेंगे तो मेरे पिता तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे."
"हांं...और मेरे भाई और पिता भी इस शादी के खिलाफ हैं. उन्हें डर है कि तुम्हें बहू बनाने पर मोहल्ले वाले परिवार का बहिष्कार कर देंगे...लेकिन क्या कोई और राह नहीं है?"
" वे 'ऑनर किलिंग' (Honour killing) पर उतारू हैं और तुम राह ढूंढ रहे हो ...ऐसे में जान देने के अलावा क्या रास्ता बचता है? घर से भागने का परिणाम तो पहले ही भुगत चुके हैं हम."
उन दोनों ने अपनी -अपनी दो कटी उंंगलियों की ओर देखा और सहमे हुए एक दूसरे से लिपट गए...यह जख्म तीन महीने पहले का था, जब दोनों दिल्ली भाग गए थे ...लेकिन वहांं पर भी 'वे' पहुंंच गए और दोनों की बेरहमी से पिटाई करते हुए उनकी दो -दो अंगुलियां काट दी. दोनों को धमकी भी दी गई कि अगर फिर मिले तो उनकी आखिरी मुलाक़ात होगी.
" तो ...क्या यह हमारी आखिरी मुलाक़ात है?...तुम कुछ सोचती क्यों नहीं? कुछ तो कहो."
" तुम क्या सोचते हो?"
" मुझे कुछ नहीं सूझता अब...चलो छलांग लगाते हैं, लेकिन उससे पहले मैं तुम्हें एक बार चूमना चाहता हूंं ...आखिरी बार ...बस..."
"हांं ...यही है रास्ता...मिल गया रास्ता...मौत से पहले तुम मुझे चूमना चाहते हो, तो भला मौत से पहले मरना क्यों चाहते हो? आओ मौत से पहले इस जिंदगी को चूमें ...आओ मौत आने से पहले जब तक संभव हो लड़ें...हमें लड़ना होगा..."
दोनों बाहें थामे पुल से नीचे उतरकर पहाड़ियों के निकट उस राह की ओर बढ़ गए जो शहर की ओर जाती है...नदी में मुंह निकाले एक बड़ा मगरमच्छ अचानक फिर से तल में चला गया.
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बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteलेकिन इतना आसान भी कहां होता है , संघर्षों के फूलों को चुनना, लेकिन कहानी ने दिशा अच्छी दी है, संघर्ष करने की