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Showing posts from 2025

कहानी : रील के बाद

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कहानी : नायला अदा AI art उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में, एक पुराना सा, खपरैल वाली छत का मकान था—न सफेद, न काला, बस वक्त की गर्द से रंगहीन। इसी घर में रहती थी नज्मा, एक पचपन की उम्र पार कर चुकी विधवा, जिसने जीवन की सारी चुनौतियों को अपने हाथ की सुई और धागे से सीकर झेला था। पति की मौत के बाद वह टूटी नहीं, बल्कि और मजबूत हो गई। अकेली औरत, दो बेटियों की मां—कोई सहारा नहीं, बस उम्मीद और हुनर। नज्मा का पूरा दिन सिलाई मशीन के आगे गुजरता था। वो सुबह की नमाज़ के बाद अपनी मशीन पर बैठती और देर रात तक लोगों के कपड़े सिलती रहती। कभी सलवार-कुर्ते, तो कभी स्कूल यूनिफॉर्म। उसी से दो वक्त की रोटी और बेटियों की फीस निकलती थी। बड़ी बेटी रौनक बारहवीं में थी। सुंदर, आत्मविश्वासी और नयी दुनिया से बेहद आकर्षित। उसे मोबाइल पर रील बनाना पसंद था। वो अपनी सहेलियों के साथ स्कूल की यूनिफॉर्म में गाने पर लिप्सिंक करती, कभी डांस, कभी एक्टिंग। घर में वह मोबाइल स्टैंड पर मोबाइल रखती और रूमाल को घूंघट की तरह ओढ़कर डायलॉग बोलती—“मुझे हीरोइन बनना है अम्मी।” नज्मा पहले तो हँस देती, मगर धीरे-धीरे डरने लगी। दुनिया देख...

गुलज़ार हुसैन के तीन कविता-पोस्टर

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  हिन्दवी ने बनाया है यह पोस्टर। हौसला वेबसाइट का बनाया पोस्टर। गुलजार हुसैन के काव्य संग्रह से एक कविता का अंश। झपसी ब्लॉग पर गुलज़ार हुसैन की कविताओं के तीन पोस्टर

सुनो लड़कियों : गुलज़ार हुसैन की एक कविता

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Artist : Gulzar Hussain सुनो, भ्रूण हत्या के आतंक का शिकार होने से बची लड़कियों सुनो कि यह समय निश्चिंत होकर बैठने का नहीं है यह समय बेहद सतर्क रहने का है क्योंकि गिद्ध अब भी मंडरा रहे हैं ये वही गिद्ध हैं जो तुम्हारे जिस्म को तुम्हारी मां के गर्भ में ही नोचना चाहते थे और अब ये तुम्हारे बचपन की अल्हड़ता पर नजरें गड़ाए हैं सुनो, युवा होती लड़कियों गिद्ध कहीं दूर नहीं गया है वह घर के बाहर भी हो सकता है और घर के अंदर भी तुम्हें डरा सकता है वह कार के अंदर से तुम्हें घूर सकता है और सडक किनारे से फब्तियां कस सकता है सुनो लड़कियों वह गिद्ध तुम्हें शादी से पहले एक दोस्त के रूप में मिल सकता है और प्रेमी के रूप में भी तुम्हें चोट पहुंचा सकता है वही गिद्ध तुम्हें शादी के बाद पति के रूप में मिल सकता है और दहेज के लिए तुम्हें जलाने की साजिश भी रच सकता है इसलिए, सुनो लड़कियों ऐसे गिद्ध पुरुषों को धक्के देकर आगे बढ़ जाओ -गुलज़ार हुसैन

रेगिस्तान में संकटों के बीच फंसे थे गुर्जिएफ

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AI Image गोबी रेगिस्तान पार करते समय किया रेतीली आंधियों का सामना जंगली ऊंट के काटने से हुई साथी की मौत टारेंट्युला के डंक के बाद काटा अपने साथी के पैर का मांस बतख के शिकार के चक्कर में दोस्त ने दागी पैर पर गोली पिता ने सांप के साथ खेलने को किया मजबूर -गुलजार हुसैन   प्रसिद्ध लेखक-विचारक जी. आई. गुर्जिएफ (George Ivanovich Gurdjieff) ने विलक्षण मनुष्यों के संग बिताए बेहद रोचक पलों, रहस्यमयी और ज्ञानवर्धक अनुभवों से अपनी जिंदगी संवारी थी। अपनी चर्चित पुस्तक मिटिंग्‍स विद रिमार्केबल मेन (Meetings with Remarkable Men) में उन्होंने एक से बढ़कर एक रोमांचक पलों को याद किया है। खौफनाक गोबी रेगिस्तान में जाना किसी भी मनुष्य के लिए आसान नहीं था, तब 1898 में गुर्जिएफ अपने ग्रुप के साथ वहां पहुंचे। इस बेहद खतरनाक और मुसीबतों से भरी यात्रा ने उनके जीवन को झकझोर कर रख दिया था। इनका ग्रुप ताशकंद से होते हुए शरक्शां नदी के किनारे से आगे बढ़ा था। गुर्जिएफ ने दिक्कतों का सामना करते हुए बहुत सारे दुर्गम पहाड़ी दर्रों को पार किया, तब जाकर वे गोबी रेगिस्तान के पास एक गांव में पहुंचे। गांव में उन्ह...

बाबासाहेब आंबेडकर की बताई राहों पर

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मुंबई में बाबासाहेब के विचार वाले पोस्टर।  File photo/ Gulzar Hussain गुलज़ार हुसैन बाबासाहेब की जयंती पर विशेष मैं जब मुंबई आया था, तो उस समय हर कदम पर एक नया संघर्ष मेरे सामने आ जाता था। आज भी संघर्ष ही अपना साथी है, लेकिन मुंबई में रहते हुए कठिन पलों के बीच आत्मसम्मान के साथ जीने की राह मुझे बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों ने दिखाई। मुंबई में पैदल चलते समय यह सोचकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा होता रहा कि यही वह धरती है, जहां बाबासाहेब ने संघर्ष करते हुए मानवता का संदेश दिया।  मुंबई बाबासाहेब की कर्मभूमि रही और यहां मैंने भी पसीना बहाया है। यहां रहते हुए लिखता रहा ...चलता रहा ...जीता रहा। उनकी किताबें मुझमें उत्साह भरती रहीं ...कहती रहीं- कोई इंसान जाति-धर्म के आधार पर न किसी से रत्ती भर छोटा है न बड़ा। मैं उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर हर साल दादर के चैत्यभूमि जाता रहा हूं। वहां शिवाजी पार्क में लगने वाले पुस्तक मेले की बात ही कुछ और होती है। कई आंबेडकरवादी दोस्तो से मिलना तो होता ही है, साथ ही कई लेखकों और एक्टिविस्टों को सुनने को भी मिलता है। नई किताबें भी खरीदने का यह बेहतरीन मौका...

घास : लघुकथा

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AI IMAGE शमीमा हुसैन बारिश खूब तेज है। मई का आखरी दिन है। आम, लीची पककर बाजार में आ गए हैं।   फरमान साहब की दो गाये हैं। दोनों बच्चावाली हैं। बेचारा बूढ़ा फरमान आसमान की तरफ देख रहा है कि कब बारिश रुके। वह बार-बार सर को खुजा रहा है। गाय के नाद में देखता और फिर कुट्टी को देखता है। उसकी  बेचैनी खटिया पर बैठी बुढ़िया देख रही थी। उसे रहा नहीं गया। गुस्से से भरकर बोली, ''आराम से बैठ ...बारिश है तूफानी ...जो घास-भूसा है उहे रहने दे।'' बूढ़ा तुनककर बोला, ''हफीज के माई, तुमको कुछ दिखाई नहीं देता है। दोनों अल्माती गाय है। इसे घास मिलना जरूरी है। बहू भी गुस्सा जतई, हम ई बारिश में ही घास काटे चल जबई।'' दो गाये हैं। दूध बेच कर जो भी पैसा होता है उसकी बहू के हाथ में जाता है।  मेरी शादी के पांच साल हो गए। आज तक चाची को कुछ खरीदते हुए नहीं देखा? जबकि मुहल्ले में रोज बेचने वाला आता है। लाई, मिठाई वाला, आम, अंगूर, केला, सभी फल वाला आता है। पर उनके मुंह पर एक पीड़ा दिखती है। पर मैं क्या करूं पड़ोस की बहू हूं। फरमान साहब जूट मील में नौकरी करते थे। अब रिटायर हैं। पेंशन भी बे...

लघुकथा : सबसे ज्यादा नशा

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रात में तीन शराबी एक बार से लड़खड़ाते हुए निकले। एक के ऊपर दूसरा और दूसरे के ऊपर तीसरा गिरा जा रहा था। तीनों एक नाले के पास खड़े हो गए। अचानक पहले ने दूसरे का कॉलर पकड़ते हुए कहा- ''तुमसे ज्यादा मुझे चढ़ी है। मेरे पैर डगमगा रहे हैं। इसका मतलब है कि वोदका में रम से ज्यादा नशा होता है।'' यह सुनते ही दूसरे पियक्कड़ ने पहले वाले के बाल पकड़ लिए और बोला- ''तू गधा है, मैं पैर से नहीं चल रहा हूं। उड़ रहा हूं। देख ले। इसका मतलब है रम में वोदका से ज्यादा नशा होता है।'' तभी सिर के बल खड़े तीसरे पियक्कड़ ने उन दोनों की पीठ पर अपने एक-एक पैर रखते हुए कहा- ''तुम दोनों ही तिलचट्टे हो। मैं इतने नशे में हूं कि सिर के बल चल रहा हूं। इसका मतलब है कि व्हिस्की में रम और वोदका से ज्यादा नशा होता है।'' तभी अचानक वहां, बीस-पच्चीस लोगों की भीड़ हाथ में लाठी, डंडे और तलवार लिए नारा लगाते आ पहुंची और तीनों पियक्कड़ों को घेर लिया।   अब तीनों पियक्कड़ उस भीड़ से ही पूछने लगे- ''भाइयों, ये बताओ, वोदका, रम और व्हिसकी में से सबसे ज्यादा नशा किसमें होता है?'...

जब मनोज कुमार का दौर था

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जब मैं छोटा था, तब घर में एक ब्लैक एंड वाइट पोर्टेबल टीवी भी था। सच कहूं, उस समय मेरे लिए उस टीवी के दौर के साथ साथ मनोज कुमार का भी दौर था। मनोज कुमार की कोई फिल्म टीवी पर आने को होती, तो हम सब भाई- बहन बेहद उत्साहित हो जाते थे। उनकी फिल्मों का इंतजार रहता था। 'शहीद', 'उपकार', 'हरियाली और रास्ता' और न जाने उनकी कितनी फिल्में हम छोटे ब्लैक एंड वाइट टीवी पर देख चुके थे... एक बार टीवी पर उनकी फिल्म 'उपकार' आने वाली थी। मेरे पड़ोस के गांव के मेरे भैया के एक दोस्त इस्लाम उस दिन घर आए थे। उन्होंने मुझे पास बुलाया और कहा, "सुनो, उपकार फिल्म जरूर देखना। इसे मत छोड़ना।" मुझे वह फिल्म देखनी तो थी ही, लेकिन उनकी बात सुनने के बाद तो मैंने नजरें गड़ाकर पूरी फिल्म देखी। दरअसल, देशभक्ति को अभिनय के रूप में प्रस्तुत करने का उनका अंदाज सबसे निराला था ...सबसे प्यारा था... 'शहीद' फिल्म जब देखने का मौका आया, तो उससे बेहद प्रभावित हुआ। मनोज कुमार के बोलने का अंदाज और उनके हाव भाव इस तरह से थे कि लगता कि भगत सिंह एकदम ऐसे ही रहे होंगे। उस फिल्म का एक गाना ...

गर्म पानी : लघुकथा

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AI Image  -शमीमा हुसैन नसीमा दिनभर गुलाम की तरह घर का काम करती रहती थी, लेकिन उसकी सास हफिया को तो यह नजर ही नहीं आता था। जब देखो तब हफिया उसे जली-कटी सुनाने लगती। हफिया अक्सर उसे यह कह कर कोसती रहती कि तुम्हारा बाप भड़वा, तुम्हारी माँ बाईजी ...तुम्हारे बाप ने यह नहीं दिया ...वह नहीं दिया ...जो दिया वह भी ख़राब दिया ...बाई जी को नहीं दिखता है।  दोनों सास बहू एक ही छत के नीचे रहती थी, लेकिन दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए बहुत नफरत भरा हुआ था। हफिया सास कम, मक्खी ज्यादा लगती थी। वह उसके हर काम में नुक्स निकाल देती थी। कभी भी वह बहू के किसी भी काम को सही नहीं कहती।  ...चाय बना दी, तो उसमें चाय पत्ती कम है ...सब्जी में हल्दी की मात्रा अधिक है ...धनिया कम है, रोटी कच्ची है ...चिकेन विसैना है। शादी का दो साल हो गया है, कभी भी अच्छी बात नहीं की। रोज -रोज की किच -किच से तंग आकर नसीमा अपने मायेका चली जाती, तब भी सास हफीया गाली बकती। नसीमा भी झगड़ा करती।  दोनों खूब लड़ाई करती। सास-बहू की लड़ाई से घर में माहौल गर्म रहता था।  नसीम कहती, ''क्या अरज के रखी है, जो इतना रोआब दिख...

आजी की पीड़ा : लघुकथा

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    AI Image -शमीमा हुसैन  मुंबई की चाली में एक अस्सी साल की वृद्ध औरत रहती है। हम सब उसे आजी (दादी) कहकर पुकारते हैं। चाली की एक परचून की दुकान वाली गली में सबसे आखिरी झोपड़ा उनका ही है। खूब टहलने और बोलने वाली आजी पिछले कुछ दिनों से बीमार है। इधर कुछ दिनों से उसकी कराहने की आवाज हर रोज सुनाई देने लगी है। पता चला है कि उनके पेट में दर्द रहने लगा है। दरअसल, यह दर्द उन्हें बहुत दिनों से था। लेकिन गली के ही एक साधारण डॉक्टर से दिखाने से उन्हें आराम हो जाता था। पर इस बार ऐसा नहीं था। वह कई बार अपने बेटे हमीर और बेटी रेहाना से अपनी तकलीफ बता चुकी थी, लेकिन दोनों के पास उनके लिए समय नहीं था।  आख़िरकार, एक दिन पड़ोसी की मदद से आजी को अस्पताल ले जाया गया।  डॉक्टर ने जांच के बाद गंभीरता से कहा, ''इनकी हालत नाजुक है। पेट में गांठ है। तुरंत ऑपरेशन करना होगा।'' इसके बाद पड़ोसी ने आजी के बेटे हमीर को फोन करके सारा मामला बताया। हमीर सुनते ही आनन-फानन में अस्पताल पंहुचा, लेकिन डॉक्टर की बात सुनते ही रोने लगा।  हमीर ने कहा, ''इस उम्र में ऑपरेशन करवाने से क्या फायदा? अम्मी शा...

मोहम्मद रफी, रेडियो और कविता

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AI image  जब मैं बच्चा था, तब मेरे घर में एक मर्फी का रेडियो था। बाबा बड़ी तन्मयता से उस पर आने वाले समाचार और संगीत प्रोग्राम सुनते। उन दिनों संगीत कार्यक्रमों में जो एक गायक राज करता था, उसका नाम था मोहम्मद रफी। उनके गाने जब शुरू होते, तो मैं भी रेडियो से चिपक जाता। परिणाम यह हुआ कि पाठ्यक्रम में शामिल कविताओं के साथ साथ ये गाने भी मुझे कंठस्थ हो गए... मीठी आवाज़ वाले इस गायक के गले से जैसे जीवनदायिनी शीतल हवा के फैलने का एहसास होता... एक से बढ़कर एक गाने मुझे हौसला देने लगे...दिल में अरमान पैदा करने लगे...इंसानियत का पैगाम देने लगे... "...जाने वालों जरा, मुड़ के देखो मुझे, एक इंसान हूं, मैं तुम्हारी तरह" "ये जिंदगी के मेले ...दुनिया में कम न होंगे, अफसोस हम न होंगे..." "चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना.." "परदेसियों से न अंखियां मिलाना..." ऐसे न जाने कितने गाने ...जो मेरे जीवन में घुलमिल गए...न जाने कितनी कविताओं की प्रेरणा बने... सच...वे इंसानियत, प्रेम और भाईचारे की आवाज़ थे... उनके जन्मदिन ( 24 Dec) पर उनकी स्मृति को सलाम! -गुलजार ...